सिद्धासन की विधि

 योनिस्थानकमन्ध्रिमूलघटितं कृत्वा दृढं विन्यसेत्

मेढ्रे पादमथैकमेव हृदये कृत्वा हनुं सुस्थिरम् ।

स्थाणु: संयमितेन्द्रियोऽचलदृशापश्येद् भ्रुवोरन्तरम्

ह्येतन्मोक्षकपाटभेदजनकं सिद्धासनं प्रोच्यते ।। 37 ।।

 

भावार्थ :- एक पैर की एड़ी को योनिस्थान में ( अण्डकोषों के ठीक नीचे वाले भाग में ) लगाकर दूसरे पैर को शिश्न  के ( लिंग ) ऊपर मजबूती से रखें । इसके बाद अपनी ठुडी को वक्षस्थल अर्थात छाती पर टिकाकर, इन्द्रियों का संयम करते हुए अपनी दोनों आँखों को भ्रुमध्य ( दोनों भौहों ) के बीच में स्थित करें अर्थात वहाँ पर देखें । यह मोक्षद्वार का भेदन करके साधक को मोक्ष प्राप्त करवाने वाला सिद्धासन कहलाता है ।

 

दूसरे मत के अनुसार सिद्धासन विधि

 मेढ्रादुपरि विन्यस्य सव्यं गुल्फं तथोपरि ।

गुल्फान्तरं च निक्षिप्य सिद्धासनमिदं भवेत् ।। 38 ।।

 

भावार्थ :- बायें टखने को लिंग के ऊपरी भाग पर रखकर दूसरे टखने को उसके ऊपर टिकायें । यह स्थिति सिद्धासन कहलाती है ।

 

विशेष :- यहाँ पर दूसरे योगियों के मत के अनुसार सिद्धासन की दूसरी विधि बताई गई है । इससे पहले श्लोक संख्या 37 में गुरु मत्स्येंद्रनाथ द्वारा बताई गई विधि का वर्णन किया गया है ।

 

सिद्धासन के अन्य नाम

 एतत् सिद्धासनं प्राहुरन्ये वज्रासनं विदुः ।

मुक्तासनं वदन्त्येके प्राहुर्गुप्तासनं परे ।। 39 ।।

 

भावार्थ :- ऊपर वर्णित विधियों को सिद्धासन कहते हैं । कुछ योग आचार्य इसे ( सिद्धासन की विधि को ) वज्रासन मानते हैं, कुछ मुक्तासन तो कुछ इसे गुप्तासन कहते हैं ।

 

विशेष :- इस श्लोक में पता चलता है कि सिद्धासन को तीन अन्य नामों से भी जाना जाता है । जो क्रमशः वज्रासन, मुक्तासन व गुप्तासन हैं ।

 

सिद्धासन की श्रेष्ठता

यमेष्विव मिताहार अहिंसा नियमेष्विव ।

मुख्यं सर्वासनेष्वेकं सिद्धा: सिद्धासनं विदुः ।।

 

भावार्थ :- जिस प्रकार सभी यमों में मिताहार को व नियमों में अहिंसा को श्रेष्ठ माना है । ठीक उसी प्रकार योगियों ने सभी आसनों में सिद्धासन को ही मुख्य अर्थात श्रेष्ठ माना है ।

 

विशेष :- यहाँ पर एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि इस श्लोक में यमों में मिताहार को श्रेष्ठ व नियमों में अहिंसा को श्रेष्ठ मानने की बात कही है । यमों के अंतर्गत मिताहार को श्रेष्ठ मानना बिलकुल सही है । लेकिन अहिंसा को नियमों में श्रेष्ठ कहना न्याय संगत नहीं है क्योंकि अहिंसा को यमों के अंतर्गत रखा गया है । नियमों में अहिंसा का वर्णन ही नहीं किया गया है । यहाँ पर इस श्लोक की विश्वसनीयता पर सन्देह होता है ।

इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इस ग्रन्थ को लिखने में सभी लेखक एकमत नहीं हैं । यदि आप हठप्रदीपिका पर लिखे गए सभी लेखकों के भाष्यों को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि बहुत सारे भाष्यकारों ने तो इसमें यम व नियम को माना ही नहीं है । लेकिन वहीं हम यू० जी० सी० नेट व क्यू० सी० आई० सिलेबस में देखें तो हठप्रदीपिका के अनुसार यम व नियम को पूछा जाता है । इससे इसके यम व नियम से सम्बंधित बात को प्रमाणिकता मिलती है ।

 

उपर्युक्त कारण से हम इस बात से तो सहमत हैं कि हठप्रदीपिका में यम व नियम का वर्णन किया गया है । लेकिन इस श्लोक में अहिंसा को नियम के अंतर्गत मानने वाली बात पर सहमति नहीं हो सकती । क्योंकि अहिंसा को यम के पहले अंग के रूप में माना गया है । नियम में तो इसका कहीं पर वर्णन ही नहीं है ।

 

दूसरा यदि हम उपनिषदों में जाबालदर्शन उपनिषद को पढ़ते हैं तो उसमें भी दस यम व नियम की बात कही गई है । लेकिन वहाँ पर भी अहिंसा को यम में ही माना गया है । नियम के अंतर्गत नहीं ।

 

निष्कर्ष :- हठयोग के सभी ग्रन्थों, योगदर्शन व उपनिषदों का अध्ययन करने के बाद हमें पता चलता है कि सभी योग आचार्यों ने अहिंसा को यमों के अंतर्गत ही रखा है । यहाँ तक की हठप्रदीपिका में भी अहिंसा को यम में ही माना है । इससे यह सिद्ध होता है कि अहिंसा यम का ही भाग है । न कि नियम का ।

लेकिन हठप्रदीपिका के श्लोक संख्या चालीस ( 40 ) में अहिंसा को नियम में बताया गया है । जो किसी भी प्रकार से तर्कपूर्ण नहीं लगता । अतः हो सकता है इस श्लोक को लिखने में कहीं पर किसी प्रकार की त्रुटि हुई हो । क्योंकि इस श्लोक का कहीं भी अन्य किसी श्लोक के साथ कोई सम्बंध नहीं दिखता । इसलिए यह श्लोक योग के विद्वानों की चर्चा का विषय है । जिस पर एक सकारात्मक चर्चा होनी चाहिए । तभी इसका कोई उचित समाधान निकल सकता है ।

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  1. Pranaam Sir! Your critical analysis helps us to look into the Shloks with a new perspective. Thank you for explaining every minute details.

  2. प्रणाम आचार्य जी! सुन्दर सूत्र व्याख्या! धन्यवाद! ओम

  3. Guru ji,
    Yam : Ahinsa, satya, Astey, brahmcharya, kshma, Dhriti,daya, Arjavam, Mitahar aur shauch. hai..
    aur sutra 38 k anusaar
    YAM me MITAHAAR aur NIYAM me AHINSA shrestha kese ho sakta hai… jab ke wo dono hi YAM k antargat aate hai..!!!!

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