मत्स्येंद्र आसन

 

 वामोरुमूलार्पित दक्षपादं जानोर्बहिर्वेष्टितवामपादम् ।

प्रगृह्य तिष्ठेत्परिवर्तिताङ्ग: श्री मत्स्यनाथोदितमासनं स्यात् ।। 28 ।।

 

भावार्थ :- बायीं जंघा के मूल भाग ( बीच में ) पर दायें पैर को रखें । अब अपने बायें पैर को अपने दाहिने पैर के घुटने के पास रखते हुए घुटने ( बायें ) को सीधा रखें । इसके बाद बायें हाथ को घुमाते हुए बायें पैर के पंजे को ही पकड़े । शरीर को पूरी तरह से घुमाते हुए दाहिने हाथ को पीछे दायीं ओर ही ले जाएं । यह श्री मत्स्येंद्रनाथ द्वारा बताया गया मत्स्येंद्र आसन है ।

 

 मत्स्येंद्र आसन के लाभ

 मत्स्येंद्रपीठं जठरप्रदीप्तिं प्रचण्डरुग्मण्डलखण्डनास्त्रम् ।

अभ्यासत: कुण्डलिनीप्रबोधं चन्द्र स्थिरत्वं च ददाति पुंसाम् ।। 29 ।।

 

भावार्थ :- मत्स्येंद्र आसन का अभ्यास करने से अभ्यासी साधकों की जठराग्नि ( पाचन तंत्र ) प्रदीप्त ( मजबूत या तेज ) होती है । जो रोगों के समूह या सभी रोगों को खत्म करने के लिए एक अस्त्र की तरह काम करती है । जिस प्रकार हम अस्त्र से अपने शत्रु को खत्म करते हैं । ठीक उसी प्रकार प्रदीप्त हुई जठराग्नि रोगों के पूरे समूह को नष्ट करने का काम करती है । साथ ही इसके अभ्यास से कुण्डलिनी शक्ति भी जागृत होती है और चंद्रमण्डल से निकलने वाला रस भी लगातार प्रवाहित होते हुए शरीर में ही स्थिर होता है । अर्थात नष्ट नहीं होता ।

 

 पश्चिमतान आसन

 प्रसार्य पादौ भुवि दण्डरूपौ दोर्भ्यां पदाग्रद्वितयं गृहीत्वा ।

जानूपरिन्यस्तललाटदेशो वसेदिदं पश्चिमतानमाहु: ।। 30 ।।

 

भावार्थ :- अपने दोनों पैरों को भूमि पर अपने सामने की ओर डण्डे के समान फैलाकर दोनों पैरों के पंजों को पकड़े । इसके बाद अपने माथे को घुटनों से आगे ( जहाँ तक सम्भव हो ) लेकर जाएं और वहीं पर उसे स्थिर कर दें । इस विधि को ही पश्चिमतान अथवा पश्चिमोत्तान आसन कहते हैं ।

 

विशेष :- बहुत सारे योग शिक्षकों का मानना है कि हमारा माथा घुटनों के ऊपर लगना चाहिए । लेकिन यह बात पूरी तरह से अवैज्ञानिक है । क्योंकि यदि हम अपने माथे को घुटनों से लगाने का प्रयास करेंगे तो हमारी कमर का ऊपरी हिस्सा ऊपर की ओर उठा रह जाएगा । जिससे हमारा पेट हमारी जंघाओं से नही लग पाएगा और ऐसा न होने की स्थिति में एक तो हम इस आसन का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं कर पाएंगे और दूसरा हमारी कमर की आकृति बिगड़ जाएगी । इसलिए हमारा माथा घुटनों की बजाय घुटनों से आगे जाना चाहिए । घुटनों पर हमारी छाती आनी चाहिए । यह पश्चिमोत्तान आसन की पूर्ण वैज्ञानिक विधि है ।

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