गुप्त विद्या

हठविद्या परं गोप्या योगिनां सिद्धिमिच्छताम् ।

भवेद्वीर्यवती गुप्ता निर्वीर्या तु प्रकाशिता ।। 11 ।।

 

भावार्थ :- योग साधना में सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले योगियों के लिए हठयोग विद्या पूरी तरह से गोपनीय ( छुपा कर रखने योग्य ) है । गुप्त रखी हुई हठयोग विद्या ही साधक को बल अथवा शक्ति प्रदान करती है और सभी को इसके बारे में बताने से यह निष्क्रिय अर्थात शक्तिहीन हो जाती है ।

 

विशेष :- यहाँ पर इस योग विद्या को गुप्त अथवा छुपा कर रखने की बात का अर्थ यह है कि किसी अयोग्य व्यक्ति को इसका ज्ञान न हो जाए । जब कोई अयोग्य या दुष्ट व्यक्ति को किसी शक्ति का ज्ञान हो जाता है । तब इस बात का खतरा रहता है कि कहीं वह इसका गलत प्रयोग न करदे । शक्ति तो शक्ति होती है । योग्य व सही व्यक्ति उसका प्रयोग सही कार्यों के लिए करता है । और अयोग्य या दुष्ट व्यक्ति उसका प्रयोग गलत कार्यों के लिए करता है । किसी अयोग्य या दुष्ट व्यक्ति को इसका ज्ञान न हो जाए । इसलिए इस योग विद्या को गुप्त रखने व योग्य व्यक्ति को ही इसका ज्ञान देने की बात कही गई है । इसका अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि इस विद्या को पूर्ण रूप से गुप्त रखना है । ऐसे तो यह ज्ञान विलुप्त ही हो जाएगा ।

योगी के लिए उपयुक्त स्थान

सुराज्ये धार्मिके देशे सुभिक्षे निरूपद्रवे ।

धनु: प्रमाणपर्यन्तं शिलाग्निजलवर्जिते ।

एकान्ते मठिका मध्ये स्थातव्यं हठयोगिना ।। 12 ।।

 

भावार्थ :- इस श्लोक में योगी के लिए उपयुक्त स्थान का वर्णन करते हुए कहा है कि योगी साधक को ऐसे स्थान पर योगाभ्यास करना चाहिए जहाँ पर न्याय प्रिय राजा का शासन हो, जिस देश में धार्मिक गतिविधियाँ होती हों, जहाँ पर भिक्षा आसानी से मिल जाए, जो स्थान सभी प्रकार के उपद्रवों ( जहाँ पर किसी तरह की अराजक घटनाएँ न घटती हों ) से रहित हो । योगी को ऐसे देश में एक छोटी कुटिया बनाकर रहना चाहिए । उस कुटिया के चारों ओर धनुष की लम्बाई व चौड़ाई जितनी दूर तक किसी भी प्रकार का कंकड़- पत्थर, अग्नि व जल का स्त्रोत नहीं होना चाहिए ।

 

अल्पद्वारमरन्ध्रगर्तविवरं नात्युच्चनीचायतं ।

सम्यग्गोमयसान्द्रलिप्तममलं निःशेषजन्तूज्झितम् ।

बह्ये मण्डपवेदिकूपरुचिरं प्राकारसंवेष्टितम् ।

प्रोक्तं योगमठस्य लक्षणमिदं सिद्धै: हठाभ्यासिभि: ।। 13 ।।

  

भावार्थ :- योगी की कुटिया का द्वार ( दरवाजा ) छोटा हो, उसमें किसी तरह का बिल और गड्डा न हो, उस स्थान पर भूमि ऊँची- नीची नहीं होनी चाहिए अर्थात समतल हो, न ही ज्यादा बड़ी हो, गोबर से अच्छी प्रकार से लिपी हो, पूरी तरह से साफ हो, सभी प्रकार के जीव- जन्तुओं से रहित हो, कुटिया के बाहर एक मण्डप अर्थात चबूतरा व कुआँ हो, चारों ओर से दीवार से घिरी हो, यह सिद्ध योगियों के आवास अर्थात उनकी कुटिया के लक्षण बताये गए हैं ।

 

एवं विधे मठे स्थित्वा सर्वचिन्ताविवर्जित: ।

गुरूपदिष्टमार्गेण योगमेव सदाभ्यसेत् ।।

 

भावार्थ :- योगी को ऊपर वर्णित कुटिया में रहकर सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त होकर सदा अपने गुरु द्वारा बताए गए योगमार्ग का अच्छी प्रकार से अभ्यास करना चाहिए ।

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  1. आज के योगियों के लिए क्या यह संभव है या यह केवल काल समय और रीति के अनुसार की गई प्रक्रिया है

  2. ॐ गुरुदेव*
    आपकी महान कृपा है,हम सब पर
    आपको हृदय से आभार।

  3. ऊॅ सर जी ।सभी श्लोको का अर्थ सरल भाषा मे समझा रहे है। पर आधुनिक योगी के लिए इस तरह की कुटिया मे योग करना सम्भव नही है ।

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