ग्रन्थ का आरम्भ

श्री आदिनाथाय नमोऽस्तु तस्मै येनोपदिष्टा हठयोगविद्या ।

विभ्राजते प्रोन्नतराजयोगमारोढुमिच्छोरधिरोहिणीव ।। 1 ।।

 

भावार्थ :- हठयोग विद्या का उपदेश करने वाले आदिनाथ ( नाथ सम्प्रदाय के जनक ) को प्रणाम करते हैं । जिन्होंने सभी योग साधनाओं में सबसे श्रेष्ठ अर्थात राजयोग साधना को प्राप्त करने के लिए सीढ़ी के समान इस हठयोग विद्या का वर्णन किया है ।

प्रणम्य श्री गुरुं नाथं स्वात्मारामेण योगिना ।

केवलं राजयोगाय हठविद्योपदिश्यते ।। 2 ।।

 

भावार्थ :- योगी स्वात्माराम गुरुओं के गुरु श्री आदिनाथ अर्थात भगवान शिव को प्रणाम करते हुए बताते हैं कि हठयोग विद्या का उपदेश केवल राजयोग को प्राप्त करने के लिए किया गया है । अन्य किसी कार्य हेतु नहीं ।

भ्रान्त्या बहुमतध्वान्ते राजयोगमजानताम् ।

हठप्रदीपिकां धत्ते स्वात्माराम: कृपाकर: ।। 3 ।।

 

भावार्थ :- जो योग साधक अनेक प्रकार की भ्रान्ति व अंधकार में पड़कर राजयोग को नहीं जान पाते । उन सभी साधकों के ऊपर स्वामी स्वात्माराम अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए उन्हें हठप्रदीपिका रूपी दीपक के माध्यम से उनका मार्ग प्रशस्त करने का काम कर रहे हैं ।

हठविद्यां हि मत्स्येन्द्रगोरक्षाद्याः विजानते ।

स्वात्मारामोऽथवा योगी जानीते तत्प्रसादत: ।। 4 ।।

 

भावार्थ :- इस हठयोग विद्या को मत्स्येंद्रनाथ और गोरक्षनाथ आदि योगी अच्छी प्रकार से जानते हैं । या फिर उनके आशीर्वाद से इस हठयोग विद्या को स्वामी स्वात्माराम जानते हैं ।

 

Related Posts

October 29, 2018

युवा वृद्धोऽतिवृद्धो वा व्याधितो दुर्बलोऽपि वा । अभ्यासात्सिद्धिमाप्नोति सर्वयोगेष्वतन्द्रित: ।। 66 ।।   भावार्थ ...

Read More

October 29, 2018

मिताहार   सुस्निग्धमधुराहारश्चतुर्थांशविवर्जित: । भुज्यते शिवसंप्रीत्यै मिताहार: स उच्यते ।। 60 ।।   भावार्थ ...

Read More

October 29, 2018

      पद्मासन द्वारा मुक्ति   पद्मासने स्थितो योगी नाडीद्वारेण पूरितम् । मारुतं धारयेद्यस्तु स ...

Read More

October 26, 2018

पद्मासन की विधि  वामोरूपरि दक्षिणं च चरणं संस्थाप्य वामं तथा दक्षोरूपरि, पश्चिमेन विधिना धृत्वा ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. सर आपका बहुत बहुत आभर कृपया आप सैदव मार्गदर्शन करते रहे।

  2. ॐ गुरुदेव*
    योग की अविरल ज्ञान गंगा
    प्रवाहित करने हेतु,
    आपका हृदय से आभार ।

  3. बहुत सुंदर अचार्यजी ,
    आपके मार्गदर्शन से हम हमेशा लाभन्वित हो रहे है।

  4. ॐ श्री परमात्मने नमः ॥ अनन्त जन्मों की अंतिम पिपासा (मोक्ष) के लिए योग की अविछिन्न ज्ञान गंगा ऐसे ही अविरल अनन्त काल तक चलती रहे, परमपिता परमात्मा से ऐसी मेरी प्रार्थना है ।

    Gopal Lal Sharma
    (Teacher of Indian Caltural) Kingston, Jamaica)

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}