सूक्ष्म ध्यान वर्णन
तेजोध्यानं श्रुतं चण्ड सूक्ष्मध्यानं श्रृणुष्व मे ।
बहुभाग्यवशाद् यस्य कुण्डली जाग्रती भवेत् ।। 18 ।।
आत्मना सहयोगेन नेत्ररंध्राद्विनिर्गता ।
विहरेद् राजमार्गे च चञ्चलत्वान्न दृश्यते ।। 19 ।।
शाम्भवीमुद्रया योगी ध्यानयोगेन सिध्यति ।
सूक्ष्मध्यानमिदं गोप्यं देवानामपि दुर्लभम् ।। 20 ।।
भावार्थ :- हे चण्ड! तेजोमय ध्यान ( ज्योति ध्यान ) सुनने के बाद अब सूक्ष्म ध्यान को सुनो । वह साधक बहुत भाग्यशाली होता है जिसकी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है । इसके बाद वह शक्ति आत्मा के सहयोग से आँखों के माध्यम से बाहर निकल कर राजमार्ग पर विचरण करती ( घूमती ) है और जो चञ्चलता के कारण दिखाई नहीं देती है ।
योगी साधक शाम्भवी मुद्रा के माध्यम से ध्यान योग को सिद्ध करता है । यह सूक्ष्म ध्यान देवताओं के लिए भी दुर्लभ ( कठिनता से प्राप्त होने वाला ) होता है । अतः इसे पूरी तरह से गुप्त रखना चाहिए ।
विशेष :- किस ध्यान के अभ्यास से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है ? उत्तर है सूक्ष्म ध्यान से । सूक्ष्म ध्यान को किस मुद्रा के द्वारा सिद्ध किया जाता है ? उत्तर है शाम्भवी मुद्रा द्वारा ।
सबसे श्रेष्ठ ध्यान
स्थूलध्यानाच्छतगुणं तेजोध्यानं प्रचक्षते ।
तेजोध्यानाल्लक्षगुणं सूक्ष्मध्यानं परात्परम् ।। 21 ।।
भावार्थ :- स्थूल ध्यान से सौ गुणा अच्छा तेजोध्यान ( ज्योति ध्यान ) कहा गया है और तेजोध्यान ध्यान से भी लाख गुणा अच्छा यह अति श्रेष्ठ सूक्ष्म ध्यान होता है ।
विशेष :- कुछ परीक्षा के लिए उपयोगी प्रश्न :- तेजोध्यान स्थूल ध्यान से कितने गुणा श्रेष्ठ है ? उत्तर है सौ गुणा ( 100 ) । सूक्ष्म ध्यान तेजो ध्यान से कितना श्रेष्ठ है ? उत्तर है लाख गुणा श्रेष्ठ है । प्रारम्भिक ध्यान कौन सा होता है ? उत्तर स्थूल ध्यान । सबसे श्रेष्ठ ध्यान की विधि कौन सी बताई गई है ? उत्तर है सूक्ष्म ध्यान विधि ।
इति ते कथितं चण्ड ध्यानयोगं सुदुर्लभम् ।
आत्मा साक्षाद् भवेद् यस्मात्तस्माद् द्धयानं विशिष्यते ।। 22 ।।
भावार्थ :- इस प्रकार हे चण्ड! मैंने तुम्हे यह अत्यंत दुर्लभ ध्यान योग बताया है । यह ध्यान योग अत्यंत श्रेष्ठ योग साधना है । क्योंकि इसके द्वारा साधक आत्मा का साक्षात्कार करता है ।
।। इति षष्ठोपदेश: समाप्त: ।।
इसी के साथ घेरण्ड संहिता का छठा अध्याय ( ध्यान योग वर्णन ) समाप्त हुआ ।
Nice ending dr sahab.
ॐ गुरुदेव!
आपका हृदय से आभार।