छटा अध्याय ( ध्यान वर्णन )

घेरण्ड संहिता के छठे अध्याय में ध्यान योग का उपदेश दिया गया है । महर्षि घेरण्ड ने ध्यान की तीन अवस्थाएँ ( स्थूल ध्यान, ज्योतिध्यान व सूक्ष्म ध्यान ) मानी हैं । ध्यान का प्रतिफल बताते हुए कहा है कि ध्यान के अभ्यास से योगी साधक को अपना स्वयं का प्रत्यक्षीकरण होता है । ध्यान को महर्षि घेरण्ड योग का छठा अंग मानते हैं ।

 

ध्यान के प्रकार

 

स्थूलं ज्योतिस्तथा सूक्ष्मं ध्यानस्य त्रिविधं विदुः ।

स्थूलं मूर्तिमयं प्रोक्तं ज्योतिस्तेजोमयं तथा ।

सूक्ष्मं बिन्दुमयं ब्रह्म कुण्डलीपरदेवता ।। 1 ।।

 

भावार्थ :-  ध्यान के तीन प्रकार होते हैं :- स्थूलध्यान, ज्योतिध्यान व सूक्ष्मध्यान । इनमें से स्थूल ध्यान को मूर्ति अथवा ठोस पदार्थ पर किया जाने वाला, ज्योति ध्यान को प्रकाशरूप अथवा तेजोमय पर किया जाने वाला व कुण्डलिनी से भी परे अर्थात् बिन्दुमय ब्रह्मा पर किया जाने वाला ध्यान सूक्ष्म ध्यान होता है ।

 

 

विशेष :-  ध्यान के कितने प्रकारों का वर्णन किया गया है ? उत्तर है तीन ( स्थूल, ज्योति व सूक्ष्म ) । किस ध्यान को मूर्ति अथवा ठोस ध्यान कहा जाता है ? उत्तर है स्थूलध्यान । तेजोमय ध्यान किस अवस्था को कहा गया है ? उत्तर है ज्योतिध्यान । कुण्डलिनी से परे या बिन्दु ध्यान किसे कहा गया है ? उत्तर है सूक्ष्मध्यान ।

 

 

स्थूल ध्यान विधि वर्णन

 

स्वकीयहृदये ध्यायेत् सुधासागरमुत्तमम् ।

तन्मध्ये रत्नद्वीपं तु सुरत्नं वालुकामयम् ।। 2 ।।

चतुर्दिक्षु निम्बतरु: बहुपुष्पसमन्वित: ।

निम्बो पवनसं कूलेवेष्टितं परिखा इव ।। 3 ।।

मालतीमल्लिकाजातीकेशरैश्चम्पकैस्तथा ।

पारिजातै: स्थलपद्मैर्गन्धामोदितदिङ्मुखै: ।। 4 ।।

तन्मध्ये संस्मरेद्योगी कल्पवृक्षं मनोहरम् ।

चतु: शाखाचतुर्वेदं नित्यपुष्पफलान्वितम् ।। 5 ।।

भ्रमरा: कोकिलास्तत्र गुञ्जन्ति निगदन्ति च ।

ध्यायेत्तत्र स्थिरो भूत्वा महामाणिक्यमण्डपम् ।। 6 ।।

तन्मध्ये तु स्मरेद्योगी पर्यङ्कं सुमनोहरम् ।

तत्रेष्टदेवतां ध्यायेद् यद्धयानं गुरु भाषितम् ।। 7 ।।

यस्य देवस्य यद्रूपं यथा भूषणवाहनम् ।

तद्रूपं ध्यायते नित्यं स्थूलध्यानमिदं विदुः ।। 8 ।।

 

भावार्थ :-  अपने हृदय प्रदेश में अमृत रूपी उत्तम समुद्र का ध्यान करते हुए उसके बीच ( समुद्र के ) में रत्नों से परिपूर्ण बालुकामय ( बालु रेत के ) के द्वीप अर्थात् टापू का ध्यान करना चाहिए ।

उसके चारों ओर बहुत सारे फलों से परिपूर्ण अर्थात् लदे हुए नीम के पेड़ हों और वह नीम के बाग उसके चारों ओर खाई के समान प्रतीत हो रहे हों ।

तथा मालती, मल्लिका, चमेली, केशर, चम्पा, स्थल कमल, व हारश्रृंगार के फूलों की सुगन्ध सभी दिशाओं को सुगन्धित कर रही हैं ।

इन सभी के बीच में ही योगी द्वारा एक अत्यंत मनमोहक कल्पवृक्ष का स्मरण अथवा ध्यान करे । जिसकी अनेक शाखाओं से चारों वेद रूपी ज्ञान के फल निरन्तर फलित हो ( प्रतिदिन बढ़ते हों ) रहे हों ।

वहाँ पर ( उस उद्यान या बाग में ) भँवरे व कोयल अपनी मधुर गुञ्जार ( गायन ) कर रहे हों । वहीं पर अपने चित्त को एक जगह पर स्थिर करके मणियों से परिपूर्ण मण्डप का ध्यान करना चाहिए ।

योगी को उसके बीच में मनमोहक पल का स्मरण अथवा ध्यान करना चाहिए । साथ ही गुरु ने जिस भी देवता का ध्यान करने की बात कही है, उसी का ध्यान करे ।

जिस देवता का जो भी आभूषण और वाहन बताया गया है । ठीक उसी आभूषण व वाहन का ध्यान करना स्थूल ध्यान होता है ।

 

 

विशेष :-  ऊपर वर्णित सभी ध्यान के तत्त्व आवश्यक हैं । विद्यार्थी इन्हें ध्यान से पढ़ें ।

Related Posts

February 21, 2019

सूक्ष्म ध्यान वर्णन   तेजोध्यानं श्रुतं चण्ड सूक्ष्मध्यानं श्रृणुष्व मे । बहुभाग्यवशाद् यस्य कुण्डली ...

Read More

February 21, 2019

प्रकारान्तरेण स्थूल ध्यान वर्णन   सहस्त्रारे महापद्मे कर्णिकायां विचिन्तयेत् । विलग्नसहितं पद्मं द्वादशैर्दलसंयुतम् ।। ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}