अश्वनी मुद्रा विधि व फल वर्णन

 

आकुञ्चयेद् गुदाद्वारं प्रकाशयेत् पुनः पुनः ।

सा भवेदश्विनी मुद्रा शक्तिप्रबोधकारिणी ।। 82 ।।

अश्वनी परमा मुद्रा गुह्यरोगविनाशिनी ।

बलपुष्टिकरी चैव अकालमरणं हरेत् ।। 83 ।।

 

भावार्थ :-  गुदाद्वार अथवा गुदा को बार- बार सिकोड़ना ( अन्दर खींचना ) व फैलाना ( बाहर की ओर धकेलना ) अश्वनी मुद्रा कहलाती है । अश्वनी मुद्रा कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने का काम करती है ।

यह विशिष्ट मुद्रा सभी गुप्त रोगों को नष्ट करती है और शरीर को बलवान व विकसित ( पोषण करने वाली ) करने वाली होती है । इसके अलावा इसका अभ्यास करने से साधक कभी भी अकाल मृत्यु ( कम उम्र में ) नहीं मरता है ।

 

पाशिनी मुद्रा विधि वर्णन

 

कण्ठपृष्ठे क्षिपेत्पादौ पाशवद् दृढबन्धनम् ।

सा एव पाशिनी मुद्रा शक्ति प्रबोधकारिणी ।। 84 ।।

पाशिनी महती मुद्रा बलपुष्टिविधायिनी ।

साधनीया प्रयत्नेन साधकै: सिद्धिकाङ्क्षिभि: ।। 85 ।।

 

 

भावार्थ :-  दोनों पैरों को अपनी गर्दन के पीछे की ओर मजबूती के साथ स्थापित करने को पाशिनी मुद्रा कहते हैं । यह पाशिनी मुद्रा भी हमारी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करती है ।

यह पाशिनी नामक श्रेष्ठ मुद्रा शरीर को पोषित करते हुए बल की वृद्धि करती है । जो साधक योग में सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं । उन्हें इस पाशिनी मुद्रा को पूरे प्रयत्न के साथ करना चाहिए ।

 

 

काकी मुद्रा विधि व फल वर्णन

 

काकचञ्चुवदास्येन पिबेद्वायुं शनै: शनै: ।

काकीमुद्रा भवेदेषा सर्वरोगविनाशिनी ।। 86 ।।

काकीमुद्रा परा मुद्रा सर्वतन्त्रेषु गोपिता ।

अस्या: प्रसादमात्रेण न रोगी काकवद् भवेत् ।। 87 ।।

 

 

भावार्थ :-  अपने मुख की आकृति को कौवे की चोंच की तरह बनाकर उससे धीरे- धीरे वायु को पीना काकीमुद्रा कहलाती है । यह काकीमुद्रा सब रोगों को नष्ट करने वाली होती है ।

काकीमुद्रा नामक इस श्रेष्ठ मुद्रा को सभी तन्त्र ग्रन्थों में गुप्त बताया है । इसका अभ्यास करने से साधक कौवे की तरह निरोगी हो जाता है ।

 

 

विशेष :- काकीमुद्रा का सम्बंध कौवे से होता है । मुख की आकृति को कौवे के समान बना लेने से ही इसका नाम काकीमुद्रा पड़ा है । इस मुद्रा से हमें एक बात का और भी ज्ञान होता है कि कौवा पक्षी कभी भी बीमार नहीं पड़ता है । इसलिए कहा गया है कि इसका अभ्यासकरने से व्यक्ति कौवे की तरह ही निरोगी बन जाता है ।

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