शाम्भवी मुद्रा विधि वर्णन
नेत्राञ्जनं समालोक्य आत्मारामं निरीक्षयेत् ।
सा भवेच्छाम्भवी मुद्रा सर्वतन्त्रेषु गोपिता ।। 64 ।।
भावार्थ :- दोनों नेत्रों से अपनी दोनों भौहों के बीच में देखते हुए मन द्वारा आत्म चिन्तन करने को शाम्भवी मुद्रा कहा गया है । सभी शास्त्रों में इस मुद्रा को गुप्त बताया गया है ।
शाम्भवी मुद्रा का फल
वेदशास्त्रपुराणानि सामान्यगणिका इव ।
इयं तु शाम्भवी मुद्रा गुप्ता कुलवधूरिव ।। 65 ।।
स एव आदिनाथश्च स च नारायण: स्वयम् ।
स च ब्रह्मा सृष्टिकारी यो मुद्रां वेत्ति शाम्भवीम् ।। 66 ।।
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्ययुक्तं महेश्वर ।
शाम्भवीं यो विजानीयात् स च ब्रह्म न चान्यथा ।। 67 ।।
भावार्थ :- सभी वेद, शास्त्र व पुराणों को शाम्भवी मुद्रा के सामने सामान्य गणिका ( साधारण वेश्या ) के समान माना है । जो सभी को आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं । जबकि शाम्भवी मुद्रा को अच्छे घर की बहु के समान गोपनीय माना जाता है ।
जो साधक शाम्भवी मुद्रा को जानता है, वह आदिनाथ अर्थात् भगवान शिव है, वह स्वयं नारायण का रूप है और वही सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा के समान है ।
हे महेश्वर! जो भी साधक इस शाम्भवी मुद्रा को जानता है वही साक्षात ब्रह्मा है, अन्यथा नहीं । यही पूर्ण रूप से सत्य और सत्य है ।
विशेष :- इस मुद्रा के वर्णन में ग्रन्थकार ने वेद, शास्त्रो व पुराणों को सामान्य गणिका ( वेश्या ) के समान बताया है और शाम्भवी मुद्रा को कुलवधू अर्थात् अच्छे घर की बहु के समान बताया है । यहाँ पर गणिका शब्द का प्रयोग केवल उदाहरण स्वरूप किया गया है । इसका अर्थ है कि वेद, शास्त्र व पुराण तो कही भी उपलब्ध हो सकते हैं या वह समान्यतः कहीं पर भी सहज रूप से मिल जाते हैं । लेकिन शाम्भवी मुद्रा का ज्ञान देने वाले विरले ( कुछ ही ) ही मिलते हैं । जिस प्रकार अच्छे घर की बहु अपनी सभी क्रियाओं को गुप्त रखती है लेकिन वेश्या अपनी किसी भी क्रिया को गुप्त नहीं रखती है । उसके विषय में सबको पता होता है कि वह क्या कार्य करती है । इसलिए ऋषि घेरण्ड ने यहाँ पर वेश्या का उदाहरण दिया है ।
यहाँ पर इस उदाहरण का वर्णन केवल कल्पना मात्र के लिए किया गया है । वास्तव में वेद, शास्त्र व पुराणों का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है ।
इस मुद्रा के सम्बन्ध में पूछा जा सकता है कि किस मुद्रा को कुलवधू, अच्छे घर की बहु या फिर बड़े घर की बहु के समान कहा जाता है ? उत्तर है शाम्भवी मुद्रा ।
Nice,thankyou sir
ॐ गुरुदेव!
बहुत सुंदर व्याख्या ।