त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्‌ ॥ 45 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे अर्जुन ! वेदों में त्रिगुणों ( सत्त्व, रज व तम ) के विषय अर्थात् इन गुणों से प्राप्त होने वाले फलों के बारे में बताया गया है । तुम इन तीनों गुणों से मुक्त ( रहित ) हो जाओ । यह तीनों गुण ही आसक्ति का कारण होते हैं । जिनसे मनुष्य द्वन्द्वों ( सुमन- दुःख, मान- अपमान, जय- पराजय, लाभ- हानि आदि ) में फंसता चला जाता है । इसलिए तुम नित्यभाव अवस्था ( जो निश्चित है ) से युक्त व योगक्षेम ( फल की इच्छा ) से रहित होकर अपने अन्तः करण में स्थित हो जाओ ।

 

 

परीक्षा उपयोगी :-  योगक्षेम का क्या अर्थ होता है ? उत्तर योग से प्राप्त होने वाले फल को योगक्षेम कहा गया है ।

 

 

यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके ।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥ 46 ।।

 

 

व्याख्या :-  ब्रह्म के तत्त्व को जानने वाले ब्राह्मण ( ज्ञानी पुरुष ) के लिए वेद के कर्मकाण्ड के विषय में जानना उतना ही उपयोगी रह जाता है । जितना बहुत बड़े जलाशय ( पानी का बहुत बड़ा स्त्रोत ) के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय जैसे कुएँ आदि की उपयोगिता रह जाती है ।

 

 

विशेष :-  जल के बहुत बड़े स्त्रोत अर्थात् बड़े जलाशय के प्राप्त हो जाने से छोटे कुएँ या छोटे जल के स्त्रोत की कोई विशेष आवश्यकता नहीं रहती । ठीक उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष द्वारा उस ब्रह्म के परम तत्त्व को जान लेने के बाद वेदों के अन्य कर्मकाण्डों को जानने की भी आवश्यकता नहीं रहती ।

 

 

फल की इच्छा का त्याग

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ 47 ।।

 

व्याख्या :-  भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि कर्म ( कार्य ) को करने में ही तुम्हारा पूर्ण अधिकार ( नियंत्रण ) है । उस कर्म से मिलने वाले फल की प्राप्ति में तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है । ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी भी फल की प्राप्ति में मनुष्य के पूर्व के कर्म संस्कार, स्थान व समय की भी भूमिका होती है । इसलिए न तो कभी अकर्मण्यता ( कर्मत्याग ) करो और न ही अपने अनुरूप ( अनुसार ) फल की इच्छा ।

 

 

विशेष :- इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग की महत्ता को बताते हुए बिना फल की इच्छा के केवल कर्म करने की बात कहते हैं । व्यवहारिक दृष्टि से यह श्लोक अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसमें दो बातों पर विशेष बल दिया गया है । एक तो यह कि जो भी कर्म करो उसका फल मेरी इच्छा के अनुसार ही मिले । ऐसे विचार का त्याग करो और दूसरा कभी भी यह भाव आपके मन में नहीं आना चाहिए कि जब मेरी इच्छा के अनुसार मुझे फल नहीं मिल रहा तो मैं कर्म क्यों करूँ ? यदि व्यक्ति प्रत्येक कार्य को अपने अनुसार फल मिलने की इच्छा से करेगा तो इसके दो मुख्य दुष्परिणाम होंगे । एक तो मनुष्य अवसादग्रस्त होगा और दूसरा उसमें अकर्मण्यता ( कर्म न करने का भाव ) का भाव पैदा होगा ।

 

आज प्रत्येक मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले उस काम से मिलने वाले फल के विषय में सोचता है और यदि किसी कारणवश उसे वैसा ही फल प्राप्त नहीं होता जैसा कि उसने सोचा था । तो वहीं से उस मनुष्य में मानसिक अवसाद की शुरूआत हो जाती है । ऐसा बार- बार होने से वह इस बात पर भी विचार करना प्रारम्भ कर देता है कि जब मुझे मेरी इच्छा के अनुसार फल प्राप्त नहीं हो रहा है तो मैं कर्म क्यों करूँ ? जब फल प्राप्त करने में मेरा कोई अधिकार ही नहीं है तो कर्म न करना ही ज्यादा उचित होगा । इस प्रकार की बातें आपको बहुत बार सुनने को मिलती होंगी कि जो भी होना है वह सब पहले से ही निश्चित है । और जो पहले से ही निश्चित है तो हम बेकार में अपनी तरफ से क्यों प्रयास करें ? इससे तो अच्छा है कि बिना कर्म करे ही रहना चाहिए । लेकिन ऐसा मानना न्यायसंगत नहीं हो सकता । यदि इस प्रकार की बात को आधार मान लिया जाता है तो कोई भी मनुष्य कर्म नहीं करेगा । इससे तो सभी के सभी अकर्मण्यता के भाव को प्राप्त हो जाएंगे । जोकि कर्म सिद्धान्त के विरुद्ध होगा । ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी प्राणी एक पल ( क्षण ) के लिए बिना कर्म किये नहीं रह सकता । आप स्वयं अनुमान लगाकर देखो कि जब आप कुछ भी कार्य नहीं कर रहे होते हैं तो भी आपका मन, इन्द्रियाँ, चित्त आदि अपना – अपना कार्य कर रहे होते हैं । इसलिए कोई भी प्राणी पलभर के लिए भी बिना काम किये नहीं रह सकता । ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि जब कोई व्यक्ति पलभर के लिए भी बिना कर्म किये हुए नहीं रह सकता तो कर्म करते हुए हमारी क्या भावना होनी चाहिए ? इसका उत्तर भगवान श्रीकृष्ण अगले श्लोक में देते हैं ।

 

 

परीक्षा उपयोगी :-  परीक्षा में पूछा जा सकता है कि यह किस अध्याय का कौनसा श्लोक है ? उत्तर है दूसरे अध्याय का सैतालीसवाँ श्लोक ( 2/47 ) ।

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  1. ॐ गुरुदेव!
    बहुत ही उत्तम व्याख्या प्रस्तुत की है आपने।
    अस्तु आपको हृदय से आभार।

  2. ऊॅ सर जी ! मै Qci Exam.practical पास कर लिया हूँ ।
    अब 20 April को लिखित परीक्षा देना है PQMS के द्वारा कृपया गाइड करे या माडल पेपर (नवीनतम)भेजने की कृपा करें ।

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