व्यक्ति के पतन का कारण

 

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।। 62 ।।

क्रोधाद्‍भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।। 63 ।।

 

 

व्याख्या :-  विषय- वासनाओं का बार- बार चिन्तन करने ( सोचने ) से मनुष्य की विषयों में आसक्ति हो जाती है । विषयों के प्रति आसक्ति होने से मनुष्य की उन विषयों को प्राप्त करने की लालसा बढ़ती है । यदि उन विषय – वासनाओं को प्राप्त करने में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती है तो मनुष्य में क्रोध की उत्पत्ति होती है ।

 

मनुष्य में क्रोध के आने से सम्मोह अर्थात् मूढ़ता ( विवेक नष्ट होना ) आती है । मूढ़ता से उसमें स्मृतिभ्रम ( शास्त्रों की शिक्षा का अभाव या दुष्परिणाम का ध्यान न रहना ) आता है । स्मृतिभ्रम होने से मनुष्य की बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का पतन ( सब कुछ नष्ट) हो जाता है ।

 

विशेष :-  ऊपर वर्णित दोनों ही श्लोक विद्यार्थियों व आम जनमानस दोनों के लिए ही अति महत्वपूर्ण हैं । इनमें बड़े ही व्यवस्थित ढंग से बताया गया है कि किस प्रकार एक विकार के उत्पन्न होने से अन्य विकार भी उसके साथ- साथ किस प्रकार आते हैं ? यह प्रश्न बहुत बार परीक्षाओं में भी पूछा जा चुका है कि इनको ( ऊपर वर्णित विकारों को ) पहले से बाद के क्रम में व्यवस्थित करें । जिसका सही क्रम इस प्रकार है :- विषयों का चिन्तन > विषयों में आसक्ति > विषयों को प्राप्त करने की इच्छा अथवा लालसा > विषयों की प्राप्ति में किसी भी प्रकार की बाधा आने से क्रोध > सम्मोह अर्थात् मूढ़ता > स्मृतिभ्रम > बुद्धिनाश > पूरी तरह से पतन होना ।

 

यहाँ पर आम व्यक्ति के लिए भी समझना आवश्यक है कि किस प्रकार विषयों का बार- बार चिन्तन करने से व्यक्ति निरन्तर पतन की ओर अग्रसर होता रहता है ? अतः प्रत्येक व्यक्ति को पूरे विवेक से इसे समझकर अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए । इससे वह जीवन में आने वाले सभी विकारों से बच सकता है ।

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