बुद्धि के भेद
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥ 41 ।।
व्याख्या :- हे कुरुनन्दन अर्जुन ! निष्काम कर्मयोग करने वालों की बुद्धि निश्चित रूप से एक ही होती है । जबकि इसके विपरीत सकाम कर्म वाले व्यक्तियों की बुद्धि अनेक प्रकार की होती है । कामनाएँ अनेक प्रकार की होने के कारण उससे युक्त बुद्धि भी अनेक प्रकार की होती है ।
विशेष :- इस श्लोक में बुद्धि के दो प्रकार बताए हैं । एक व्यवसायत्मिका अर्थात् निष्काम कर्मयोग वाली निश्चित बुद्धि और दूसरी सकाम कर्म वाली अनन्त प्रकार वाली बुद्धि । निष्काम कर्मयोग वाली बुद्धि स्थिर व अनन्त प्रकार वाली अस्थिर बुद्धि कहलाती है । इनमें निष्काम कर्मयोग वाली बुद्धि ही श्रेष्ठ होती है । यही बुद्धि मनुष्य को कर्म के बन्धन से मुक्त करती है ।
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ 42 ।।
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् ।
क्रियाविश्लेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥ 43 ।।
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥ 44 ।।
व्याख्या :- यहाँ पर व्यवसायिक बुद्धि से अलग बुद्धि के लक्षण व परिणाम बताते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे पार्थ ! जो अज्ञानी मनुष्य वेदों के कर्मकाण्ड से मिलने वाले फलों अथवा परिणामों को सुनकर उनमें आसक्ति रखते हैं अर्थात जिनके भीतर कर्मफल की कामना ( भोग और ऐश्वर्य की कामना ) होती है । जिनका मानना है कि इस जन्म के कर्मफलों व स्वर्ग के सुख से बड़ा कोई सुख नहीं होता । ऐसी सुख- भोग की अनन्त क्रियाओं में लिप्त होने से उनके चित्त का हरण ( आसक्ति या ताकत से जिसे नियंत्रण में किया जाता है ) कर लिया जाता है । इस प्रकार बड़े सुख व भोग की कामना में अत्यंत आसक्ति रखने वाले कामी मनुष्यों की निश्चयात्मक अथवा व्यवसायिक बुद्धि कभी भी स्थिर अथवा एकाग्र नहीं रहती ।
विशेष :- इन सभी श्लोकों में सकामी मनुष्यों ( जो फल की इच्छा रखते हैं ) की बुद्धि के लक्षण व परिणामों को बताया गया है । इस प्रकार भोगों में आसक्ति रखने वाले मनुष्यों को सबसे बड़ी हानि यही होती है कि उनकी बुद्धि कभी भी समाधिस्थ अथवा एकाग्र नहीं रहती और जब तक मनुष्य की बुद्धि एकाग्र नहीं होगी तब तक वह आसक्ति के वशीभूत होकर इन सुख – भोगों में ही लिप्त ही रहता है । अतः मनुष्य को व्यवसायिक बुद्धि वाला होना चाहिए ।
परीक्षा उपयोगी :- किस प्रकार की बुद्धि समाधिस्थ अथवा एकाग्र नहीं होती ? उत्तर है कर्मफलों व स्वर्ग आदि की प्राप्ति की इच्छा रखने वाली सकाम बुद्धि कभी समाधिस्थ अथवा एकाग्र नहीं रहती ।
Thanks a lot sir
Dr sahab nice explain about type of buddi.
Bhut sundar btaya apne….
बहुत-बहुत धन्यवाद गुरु जी