स्वधर्म की उपयोगिता

 

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि ।
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥ 31 ।।

 

व्याख्या :-  इसलिए अपने स्वधर्म ( स्वाभाविक कर्म ) को ध्यान में रखते हुए इस विपरीत परिस्थिति में तुम्हे विचलित नहीं होना चाहिए । क्योंकि एक क्षत्रिय व्यक्ति के लिए युद्ध से बड़ा और कोई धर्म अथवा कल्याणकारी मार्ग नहीं है ।

 

 

विशेष :-  यहाँ पर श्रीकृष्ण ने स्वधर्म की महत्ता बताते हुए एक क्षत्रिय के लिए युद्ध को ही सबसे बड़ा कल्याणकारी मार्ग बताया है ।

 

 

यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम्‌ ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्‌ ॥ 32 ।।

 

व्याख्या :-  हे पार्थ ! वह युद्ध जो बिना प्रयास करें अपने आप ही प्राप्त हुआ हो, वह युद्ध तो क्षत्रिय अथवा योद्धा के लिए स्वर्ग के द्वार खोल देता है । वह क्षत्रिय अथवा वीर बड़े भाग्यशाली होते हैं । जिनको इस प्रकार के युद्ध मिलते हैं ।

 

 

 

विशेष :-  जिस किसी भी व्यक्ति का वर्ण क्षत्रिय होता है । उसे बचपन से ही युद्ध की शिक्षा दी जाती है । एक क्षत्रिय के लिए युद्ध सबसे बड़ा पर्व होता है । युद्ध को देखकर जिनकी आँखों में चमक आ जाती है । वें ही वास्तव में क्षत्रिय होते हैं । युद्ध में जाना क्षत्रिय के लिए गौरव की बात होती है । इस श्लोक में भी इसी का वर्णन किया गया है ।

 

 

 

अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्‍ग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥ 33 ।।

अकीर्तिं चापि भूतानि
कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्‌ ।
सम्भावितस्य चाकीर्ति-
र्मरणादतिरिच्यते ॥ 34 ।।

भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम्‌ ॥ 35 ।।

 

 

व्याख्या :-  लेकिन यदि तुम अपने क्षत्रिय धर्म के अनुसार इस धर्मयुद्ध को नहीं करोगे तो तुम अपने स्वधर्म अर्थात् क्षत्रिय धर्म से विमुख होकर अपने लिए पाप व अपकीर्ति ( बुराई ) को ही प्राप्त करोगे ।

ऐसा होने से सभी लोग अनन्त काल तक तुम्हारी अपकीर्ति का वर्णन करते रहेंगे और एक स्वाभिमानी अथवा प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बढ़कर अथवा एक अभिशाप होती है ।

इस प्रकार युद्ध करने से मना करने से यह सभी महारथी तुम्हें मृत्यु के डर से युद्ध न करने वाला समझेंगे । जिसके परिणामस्वरूप जिन योद्धाओं की दृष्टि में तुम एक सम्मानित योद्धा समझे जाते थे । अब वें ही तुम्हें छोटा अथवा कायर समझेंगे ।

 

 

विशेष :-  प्रस्तुत श्लोक से हमें ज्ञान होता है कि जब भी कोई व्यक्ति अपने स्वधर्म के अनुरूप कार्य न करके उससे विपरीत कार्य करता है तो चारों ओर उसकी बुराई की जाती है । इसलिए सभी लोगों को अपने स्वधर्म के अनुसार ही कार्य करने चाहिए ।

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