अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥ 28 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे भारत ! ( भरतवंशी ) संसार के सभी प्राणी अपने जन्म से पहले अव्यक्त अर्थात् अदृश्य रहते हैं । जन्म के बाद वह व्यक्त अर्थात् दिखाई देते हैं और मरने के बाद वह फिर से अव्यक्त अर्थात् दिखाई नहीं देते । अतः जिस प्राणी का जीवन से पहले व बाद में जिनका कोई अस्तित्त्व ही नहीं रहता । केवल जीवन काल ( मध्य ) में ही जो कुछ समय तक हमारे बीच रहता है तो फिर ऐसे थोड़े से समय के जीवन के लिए शोक किस बात का ?

 

 

विशेष :-  इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने जीवन से पहले, जीवन के समय की व जीवन के बाद कि स्थिति का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है । इस श्लोक को गहराई से समझने की आवश्यकता है । जो प्राणी जन्म से पहले अदृश्य था और मरने के बाद भी जो अदृश्य हो जाएगा, तो ऐसे में जो थोड़े से समय के लिए मिला हो, उसके जाने से दुःख किस बात का ? यह तो ठीक वैसे ही हुआ जैसे किसी के घर में कुछ समय के लिए कोई अतिथि आ जाए और उसके बाद वह वापिस अपने घर चला जाता है । क्योंकि वह तो अतिथि था और अतिथि तो हमेशा कुछ समय के लिए ही होते हैं । इसलिए कुछ समय के लिए मिली किसी वस्तु अथवा पदार्थ के वापिस चले जाने में शोक किस बात का ? इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब रेलवे स्टेशन पर कोई ट्रेन आती है तो वह कुछ समय तक रुकती है और फिर वापिस अपने गन्तव्य की ओर अग्रसर हो जाती है । उस कुछ समय में यदि हम ट्रेन से आसक्ति अथवा लगाव कर लेते हैं तो यह हमारी मूर्खता ही होगी । इसलिए कहा गया है कि जो पहले भी नहीं था और बाद में भी नहीं होगा तो ऐसे में उसके लिए शोक प्रकट करना उचित नहीं है ।

इस श्लोक में राजा भरत के नाम से पड़े भारत देश में रहने के कारण अर्जुन को भारत अथवा भरतवंशी कहा गया है ।

 

 

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः ।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्‌ ॥ 29 ।।

 

व्याख्या :-  कुछ व्यक्ति इस आत्मा को अद्भुत मानते हुए आश्चर्यजनक रूप से इसकी ओर देखते हैं, कुछ व्यक्ति इसकी अद्भुत अवस्था का दूसरों को वर्णन करते हैं, कुछ व्यक्ति इसके वर्णन को आश्चर्यचकित होकर सुनते हैं । लेकिन वहीं कुछ व्यक्ति इसको देखकर, सुनकर और इसका वर्णन करके भी इसके सार तत्त्व को नहीं जान पाते हैं ।

 

 

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ 30 ।।

 

व्याख्या :-  हे भारत ! सभी के शरीरों में रहने वाला यह आत्मा अवध्य ( जिसका वध न किया जा सके ) है । इसलिए तुम्हे किसी भी प्राणी की मृत्यु होने पर किसी प्रकार का शोक अथवा दुःख मनाना बिलकुल भी उचित नहीं है ।

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  1. ओम् गुरुदेव!
    आत्मा की अमरता व अवध्यता का बहुत सुन्दर वर्णन
    किया है आपने।
    अस्तु आपको हृदय से आभार।

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