अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ 17 ।।

 

व्याख्या :-  जिससे यह सबकुछ निर्मित है अर्थात् जिसकी उपस्थिति से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है । वह अविनाशी है और उस अविनाशी का किसी द्वारा भी नाश नहीं किया जा सकता ।

 

 

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥ 18 ।।

 

व्याख्या :-  इस नित्य और अविनाशी आत्मा के यह सभी शरीर नाशवान होते हैं । अतः हे अर्जुन ! तुम इन सभी नश्वर शरीरों की चिन्ता छोड़कर केवल युद्ध करो ।

 

 

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्‌ ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥ 19

 

व्याख्या :-  जो व्यक्ति इस आत्मा को ही मारने वाला या मरने वाला मानता हैं । ऐसे दोनों ही व्यक्तियों को सत्य अथवा सच्चाई की जानकारी नहीं है । क्योंकि आत्मा को न ही तो कोई मार सकता है और न ही कभी आत्मा किसी को मारती है ।

 

 

विशेष :-  जिन लोगों को आत्मा के विषय में किसी प्रकार का कोई भ्रम हो, वह इस श्लोक को अवश्य पढ़ें । इस श्लोक में आत्मा के वास्तविक स्वरूप को बताया गया है कि आत्मा न तो कभी किसी को मारता है और न ही आत्मा को कोई मार सकता है । हमारे समाज में बहुत से लोग इस प्रकार का दावा करते हैं कि कोई तांत्रिक किसी की भी आत्मा को वश में करके उससे अपनी मनमर्जी का काम करवाते हैं । गीता इस प्रकार के सभी दावों का स्पष्ट रूप से खण्डन करती है । तभी गीता को भ्रान्ति निवारक ग्रन्थ के रूप में भी जाना जाता है ।

 

अजन्मा आत्मा

 

न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ 20 ।।

 

व्याख्या :-  आत्मा न तो कभी जन्म लेता अर्थात् यह अजन्मा है और न ही इसका कभी अन्त होता है अर्थात् यह अमर है । आत्मा अजन्मा अर्थात् जन्म रहित, नित्य अर्थात् जो कारण या नाश रहित, सदैव विद्यमान रहने वाला अर्थात्  कभी भी लुप्त न होने वाला और सनातन अर्थात् अनादि काल से है । हमारे शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होता ।

 

 

विशेष :-  इस श्लोक में आत्मा के अजन्मा, अमर, सदा विद्यमान रहने वाले, नित्य, सनातन और पुरातन आदि गुणों का वर्णन किया गया है । जोकि परीक्षा की दृष्टि से भी उपयोगी हैं ।

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