देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ 13 ।।
व्याख्या :- जिस प्रकार इस शरीर को प्राप्त करने वाला प्रत्येक मनुष्य के जीवन में बचपन, युवावस्था व बुढ़ापे आदि सभी अवस्थाएँ आती हैं । ठीक उसी प्रकार मृत्यु के बाद भी इस आत्मा को दूसरा शरीर प्राप्त हो जाता है । अतः बुद्धिमान व्यक्ति इस शरीर के प्रति किसी तरह का कोई मोह नहीं रखते हैं ।
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥ 14 ।।
व्याख्या :- हे कुन्तीपुत्र ! जिस प्रकार इन्द्रियों का उनके विषयों के साथ सम्बन्ध स्थापित होने से हम सर्दी- गर्मी व सुख – दुःख का अनुभव करते हैं । यह सभी ( सुख- दुःख ) आते- जाते रहते हैं अर्थात् यह सब अनित्य हैं । इसलिए हे भारत ! ( अर्जुन ) इन सभी द्वन्द्वों का सामना करते हुए सदा इन्हें दूर करने का प्रत्यन करो ।
विशेष :- इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने सर्दी- गर्मी व सुख- दुःख आदि द्वन्द्वों को अनित्य मानते हुए उन्हें दूर करने का प्रयास करने की बात कही है ।
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥ 15 ।।
व्याख्या :- हे पुरूषश्रेष्ठ ! अथवा नरश्रेष्ठ ! जो ज्ञानी पुरुष सुख- दुःख आदि द्वन्द्वों में समभाव से युक्त अर्थात् एकसमान रहता है और किसी भी प्रकार से व्यथित नहीं होता । वही ज्ञानी पुरुष उस अमृत रुपी ब्रह्मा को प्राप्त करता है अर्थात् मुक्ति को पाता है ।
विशेष :- यहाँ पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो ज्ञानी पुरुष सुख व दुःख में समभाव से युक्त रहता है और कभी व्यथित नहीं होता । वही मुक्ति को प्राप्त करता है । इससे समत्वं योग की उपयोगिता को दर्शाया गया है । जिसका वर्णन आगे आने वाले श्लोकों में भी किया जाएगा । यहाँ उसका लक्षण प्रस्तुत किया गया है ।
आत्मा की अमरता का वर्णन
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥ 16 ।।
व्याख्या :- जो वस्तु या पदार्थ है ही नहीं उसका सदा अभाव ही रहता है । उसे असत् कहते हैं और जिस वस्तु या पदार्थ की विद्यमानता है उसका कभी भी अभाव नहीं होता । उसे सत् कहते हैं । अतः जिसका नाश निश्चित है ( शरीर ) और जिसका कभी भी नाश नहीं होता ( आत्मा ) इन दोनों तथ्यों को ज्ञानी व्यक्ति अच्छी तरह से जानते हैं ।
विशेष :- इस श्लोक में सत् ( आत्मा ) की अमरता व असत् ( शरीर ) की नश्वरता के विषय में बताया गया है । गीता में भी आत्मा को अविनाशी व शरीर को नश्वर ( जिसका नाश होना निश्चित हो ) माना गया है ।
Dr sahab nice explain about davanda.