छ: आसुरी अवगुण ( आसुरी प्रवृत्ति के लक्षण )

  

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च ।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌ ।। 4 ।।

 

 

व्याख्या :-  अब श्रीकृष्ण आसुरी सम्पदा के साथ पैदा हुए लक्षणों का वर्णन करते हुए कहते हैं – हे पार्थ ! दम्भ ( स्वयं को झूठे रूप में प्रस्तुत करना ), दर्प ( अपनी सुन्दरता, धन या फिर बल पर इतराना अथवा मान करना ) अभिमान करना ( केवल स्वयं को ही श्रेष्ठ समझना ), क्रोध ( गुस्सा करना ), वाणी में निष्ठुरता अथवा वाणी का कठोर होना और अज्ञान ( विषय का विपरीत ज्ञान अथवा सही जानकारी न होना ) – ये सभी लक्षण आसुरी सम्पत्ति के साथ पैदा होने वाले व्यक्तियों में पाए जाते हैं ।

 

 

 

विशेष :-

  • आसुरी सम्पदा के कितने लक्षणों का वर्णन सोलहवें अध्याय में किया गया है अथवा भगवान श्रीकृष्ण ने आसुरी प्रवृत्ति के कितने लक्षण बताए हैं ? उत्तर है – छ: ( 6 ) लक्षणों का वर्णन किया गया है ।
  • इसके अतिरिक्त इन आसुरी सम्पदा के लक्षणों को वैसे भी पूछा जा सकता है, इसलिए विद्यार्थीयों को इन छ: लक्षणों को भी याद करना चाहिए ।

 

 

 

दैवीय सम्पदा = मोक्षकारक, आसुरी सम्पदा = बन्धन कारक

  

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।

मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ।। 5 ।।

 

 

व्याख्या :- इन दोनों सम्पदाओं में से जो दैवीय सम्पदा है, वह मोक्ष प्रदान करवाने वाली होती है और आसुरी सम्पदा मनुष्य के बन्धन का कारण ( पुनर्जन्म का कारण ) बनती है । हे पाण्डव ! तुम शोक अथवा चिन्ता मत करो, क्योंकि तुम दैवीय सम्पदा के साथ पैदा हुए हो ।

 

 

विशेष :-

  • दैवीय सम्पदा किस का कारण बनती है अथवा दैवीय गुणों के साथ पैदा हुआ व्यक्ति किसको प्राप्त होता है ? उत्तर है – मोक्ष को प्राप्त होता है ।
  • कौन सी सम्पदा बन्धन अथवा पुनर्जन्म का कारण बनती है ? उत्तर है – आसुरी सम्पदा ।

 

 

 

द्वौ भूतसर्गौ लोकऽस्मिन्दैव आसुर एव च ।

दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ में श्रृणु ।। 6 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  हे पार्थ ! इस संसार में मनुष्यों की दो प्रकार की प्रवृत्ति पाई जाती है – एक दैवीय और दूसरी आसुरी । दैवीय गुणों से युक्त व्यक्तियों का वर्णन हो चुका, अब आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के बारे में विस्तारपूर्वक सुनो –

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