चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः ।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः ।। 11 ।।
व्याख्या :- मृत्युपर्यन्त जीवित रहने वाली अनेक चिन्ताओं का आश्रय अथवा सहारा लेने वाले, काम और भोग को ही श्रेष्ठ मानने वाले लोगों का यही निश्चित मत होता है कि यह काम और भोग ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य होते हैं ।
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः ।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान् ।। 12 ।।
व्याख्या :- आशाओं के सैकड़ों बन्धनों में बन्धे हुए काम व क्रोध से युक्त असुर प्रवृत्ति के लोग, काम व भोग की इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए अन्यायपूर्ण धन को इकट्ठा करने की कामना करते रहते हैं ।
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् ।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ।। 13 ।।
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ।। 14 ।।
आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया ।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः ।। 15 ।।
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः ।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ।। 16 ।।
व्याख्या :- वह असुर प्रवृत्ति वाले व्यक्ति सोचते हैं कि आज मैंने इसे प्राप्त कर लिया है और कल मैं अपनी उस मनोकामना को पूरी करूँगा । आज इतना धन मेरे पास है कल फिर से इतना ही धन मेरे पास आ जाएगा ।
इस दुश्मन को मैंने मार दिया और उन दूसरे दुश्मनों को भी मैं मार दूँगा । मैं ही ईश्वर हूँ, मैं ही भोगी हूँ, मैं ही सिद्ध पुरूष हूँ, मैं ही बलवान हूँ और मैं ही सुखी हूँ ।
मैं धनवान और बड़े कुल का हूँ, मेरे समान धनाढ्य व बड़े परिवार से और कौन है ? मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और मौज मस्ती करूँगा । इस प्रकार वह अज्ञान के मोह से वशीभूत होकर –
अनेक प्रकार की चित्त भ्रान्तियों से भ्रमित, मोह के जाल में फंसकर, विषयभोगो में आसक्त असुर व्यक्ति अपवित्र नरक में गिरते हैं ।