आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि ।

मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्‌ ।। 20 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! वह मूर्ख लोग मुझे प्राप्त न होकर बार- बार असुर योनियों में ही जन्म लेते रहते हैं । इस प्रकार वह मुझे न प्राप्त करके आगे और भी अधिक पाप योनियों में जन्म लेते हैं ।

 

 

 

नरक के तीन द्वार = काम, क्रोध और लोभ

 

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌ ।। 21 ।।

 

 

व्याख्या :-  काम, क्रोध और लोभ ये नरक के तीन द्वार हैं, जो हमारे आत्मतत्त्व को नष्ट कर देते हैं, इसलिए हमें इन तीनों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए ।

 

 

विशेष :-

  • गीता के अनुसार नरक के तीन द्वार कौन- कौन से कहे गए हैं ? उत्तर है – काम, क्रोध व लोभ ।
  • काम, क्रोध व लोभ क्या करते हैं ? उत्तर है – हमारे आत्मतत्त्व को नष्ट करते हैं ।

 

 

काम, क्रोध व लोभ से मुक्ति = परमगति की प्राप्ति

 

एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः ।

आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्‌ ।। 22 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! जो भी व्यक्ति तम के इन तीन द्वारों ( काम, क्रोध व लोभ ) पर निर्भर न रहकर इनसे पूरी तरह से मुक्त हो जाता है और जो अपने लिए श्रेष्ठ व्यवहार का आचरण करने लगता है, वह परमगति को प्राप्त होता है ।

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