प्रिय भक्त के लक्षण

 

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।

निर्ममो निरहङ्‍कारः समदुःखसुखः क्षमी ।। 13 ।।

संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः ।

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः ।। 14 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  जो भक्त किसी के प्रति द्वेष भावना नहीं रखता, जो सभी प्राणियों से मित्रता रखता है, जो दुःखियों के प्रति करुणा की भावना रखता है और जो मोह व अहंकार से रहित है, जो सुख- दुःख में समान भाव रखता है तथा जो क्षमाशील है –

 

जो सदा सन्तुष्ट रहता है, जो अपनी इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखता है, जो दृढ़ निश्चय रखता है और जो अपने मन व बुद्धि को मुझमें समर्पित कर देता है, वही मेरा भक्त मुझे सबसे प्रिय ( प्यारा ) है ।

 

 

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः ।

हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ।। 15 ।।

 

 

व्याख्या :-  जिस भक्त से इस लोक में कोई प्राणी खिन्न अथवा व्याकुल नहीं होता है और जो स्वयं भी इस लोक में किसी प्राणी से खिन्न अथवा व्याकुल नहीं होता है तथा खुशी, ईर्ष्या, भय और उद्वेगों से रहित है, वही भक्त मुझे प्रिय है ।

Related Posts

October 5, 2019

समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः । शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्‍गविवर्जितः ।। 18 ।। ...

Read More

October 5, 2019

अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः । सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ।। 16 ।। ...

Read More

October 5, 2019

प्रिय भक्त के लक्षण   अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च । निर्ममो निरहङ्‍कारः ...

Read More

October 5, 2019

फलासक्ति का त्याग   अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः । सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान्‌ ।। 11 ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}