बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ।। 4 ।।
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ।। 5 ।।
व्याख्या :- प्राणियों में बुद्धि, ज्ञान, विरक्ति, क्षमा, सत्य, इन्द्रिय निग्रह, मनो निग्रह, सुख- दुःख, प्रकट होना व नष्ट होना, भय, निडरता और –
अहिंसा, समानता, सन्तुष्टि, तप, दान, कीर्ति- अपकीर्ति आदि जो अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं, उन सभी की उत्पत्ति मुझसे ही होती है ।
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ।। 6 ।।
व्याख्या :- मरीचि आदि सात ऋषि व इनसे से भी पहले में हुए सनक आदि चार अन्य ऋषि तथा मनु, ये सभी मेरे द्वारा ही उत्पन्न किए हुए हैं । सम्पूर्ण लोक में फैली हुई प्रजा इनकी ही सन्ताने हैं ।
विशेष :- इस श्लोक में वर्णित ऋषियों के विषय में परीक्षा में प्रश्न पूछे जा सकते हैं –
सात ऋषि :- मरीचि, अङ्गिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ ।
पूर्व के चार ऋषि :- सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार ।
चौदह मनु :- स्वायम्भुव, स्वारोचिष, औत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, सूर्यसावर्णि, दक्षसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, रौच्य और भौत्य ।
- सबसे पहले के चार ऋषि कौन- कौन हैं ? जिसका उत्तर है- सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार ।
- मनु की संख्या कितनी बताई गई है ? जिसका उत्तर है- चौदह ( 14 ) ।
मरीचि आदि सात ऋषियों का काल कौन सा था ? अथवा इन ऋषियों का जन्म किस काल में हुआ था ? जिसका उत्तर है – महाभारत काल में ।