आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ।। 28 ।।
व्याख्या :- सभी अस्त्रों में मैं वज्र हूँ, गायों में मैं कामधेनु गाय हूँ, सन्तान पैदा करने वाला कामदेव भी मैं ही हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि भी मैं ही हूँ ।
विशेष :- वज्र सभी अस्त्रों में सबसे मजबूत होता है । कामधेनु अनन्त व इच्छानुसार दूध देने वाली गाय होती है । सभी सर्पों में सर्वश्रेष्ठ अथवा सर्पों का राजा वासुकि होता है ।
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ।। 29 ।।
व्याख्या :- नागों में मैं अनन्त शेषनाग हूँ, जलचरों में मैं वरुण हूँ, पित्तरों में मैं अर्यमा नामक पित्तर हूँ और संयमों में मैं यम हूँ ।
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ।। 30 ।।
व्याख्या :- दैत्यों में मैं प्रह्लाद हूँ, कलने अथवा ग्रसने वालों में मैं काल हूँ, सभी पशुओं में मैं सिंह अर्थात् शेर हूँ और सभी पक्षियों में मैं गरुड़ पक्षी हूँ ।
विशेष :- काल अथवा समय को कलने अथवा ग्रसने वाला इसलिए कहा जाता है क्योंकि काल का यह चक्र एक दिन सबको नष्ट कर देता है ।
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् ।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ।। 31 ।।
व्याख्या :- पवित्र करने वालों में मैं पवन अथवा वायु हूँ, सभी शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ, जलचरों में मैं मगरमच्छ हूँ और सभी नदियों में मैं गंगा नदी हूँ ।