शब्दज्ञानानुपाती वस्तुुशून्यो विकल्प: ।। 9 ।।
शब्दार्थ :- शब्दज्ञानानुपाती , ( शब्द ज्ञान से उत्पन्न होने वाला ) वस्तुशून्य , ( जो वस्तु से रहित हो ) विकल्प: ( विपरीत कल्पना करना )
सूत्रार्थ :- शब्द के आधार पर जो ज्ञान उत्पन्न होता है, लेकिन जो ( पदार्थ या वस्तु ) वास्तव में नही है। उसकी कल्पना करने को ही विकल्प वृत्ति कहा है।
व्याख्या :- जिस ज्ञान की उत्पत्ति केवल शब्द से होती है । वास्तव में वैसा कुछ भी नही होता हो। ऐसी विपरीत कोरी कल्पना को विकल्प वृत्ति कहते हैं ।
उदाहरण स्वरूप :-
जैसे कहा जाए कि ‘गधे के सींग’, लेकिन गधे के सींग तो होते ही नही है। केवल शब्द के आधार पर ही जिसकी कल्पना की जाए। वास्तव में उसकी कोई सत्ता ( विद्यमानता ) न हो । ऐसे विपरीत ज्ञान को ही विकल्प वृत्ति कहते हैं ।
विकल्प वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-
जैसे कहा जाए कि बाँझ * के पुत्र द्वारा गाँव के लोगों को प्रताड़ित किया जाएगा । ऐसा सुनने से अवशय ही दुःख होगा । परन्तु बाँझ का पुत्र तो होता ही नही है। फिर भी इस प्रकार की कल्पना करके दुःखी होना ही विकल्प वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप है।
विकल्प वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :-
जैसे कहा जाए कि कल बाँझ के पुत्र द्वारा गाँव के लोगों को सम्मानित किया जाएगा । ऐसा सुनने मात्र से अच्छा महसूस होगा । लेकिन यहाँ भी बाँझ का पुत्र तो होता ही नही है । फिर भी इस प्रकार की कल्पना करके सुख की अनुभूति करना ही विकल्प वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप है।
नोट (*) :- बाँझ उस औरत को कहा जाता है जो कभी भी माँ नही बन सकती है। इसलिए बाँझ के पुत्र की कल्पना करना निरर्थक है । यहाँ पर केवल शब्द के आधार पर ज्ञान की उत्पत्ति हुई है । वास्तव में उसकी कोई सत्ता नही है । इस प्रकार की कोरी कल्पना करना ही विकल्प वृत्ति कहलाती है ।
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ॐ* गुरुदेव!
आपने विकल्प वृत्ति की बहुत ही उत्तम व्याख्या की है।
ये वृत्ति हमारे समझ में नहीं आ रही थी, परंतु आपने तो इसे अत्यंत सरल शब्दों में स्पष्ट कर दिया।
आपकी विश्लेषात्मक शैली अति उत्तम है,हम लोगों का मार्गदर्शन करने हेतु आपका हृदय से बहुत_ बहुत आभार ।
Nice article with great examples.. Thx 4 sharing Dr. Somveer jee!!
Nice example guru ji in common way
Thnks sir
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