विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् ।। 8 ।।
शब्दार्थ :- अतद्रुपप्रतिष्ठम् , ( जो उस पदार्थ या वस्तु के स्वरूप में प्रतिष्ठित नही है। ) मिथ्याज्ञान , ( झूठी या गलत जानकारी ) विपर्यय ( विपरीत, उल्टा ) है।
सूत्रार्थ :- विपर्यय वृत्ति एक ऐसा झूठा या गलत ज्ञान है, जो कि वहाँ उस पदार्थ या वस्तु में है ही नही । जिसे हम उस पदार्थ में मानने का भ्रम किए हुए हैं। जैसे कि रस्सी को साँप समझना । गलत ज्ञान के कारण किसी भी वस्तु को उसके वास्तविक स्वरूप से विपरीत समझना विपर्यय वृत्ति होती है। जहाँ वस्तु कुछ और होती है, लेकिन अपनी अज्ञानता के कारण हम उसे समझ कुछ और लेते हैंं। जैसे कि अँधेरे में पड़ी रस्सी को साँप समझना।
विपर्यय वृत्ति का उद्भव :-
विपर्यय वृत्ति का जन्म अविद्या से होता है। अविद्या का अर्थ है सत्य को असत्य और असत्य को सत्य मानना। इसी अविद्या के फलस्वरूप हमें विपरीत ज्ञान हो जाता है। इससे हम वास्तविक ज्ञान से दूर हो जाते हैं।
विपर्यय वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-
जब कोई व्यक्ति अँधेरे में पड़ी रस्सी को साँप समझकर उससे डरता या भयभीत हो जाना ही विपर्यय वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप है।
विपर्यय वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :-
जब कोई व्यक्ति रस्सी ढूंढ रहा हो और कम रोशनी के कारण वह साँप को रस्सी समझ कर खुश होना ही विपर्यय वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप है।
Comment… thanku for the valuable knowledge sir
इस सुंदर ज्ञान को और इस सुंदर ज्ञान की शिक्षा देने वाले श्रीमान गुरु जी को सादर प्रणाम ।।
Sir Thank you
आपका ज्ञान चहुँ ओर फैले
दिग्दिगन्त और अनन्त
सबमें हो सोम सोम सोम ओम् ओम् ओम्
सादर प्रणाम सर …बहुत सटीक और कम शब्दों में व्याख्या की आपने विपर्यय वृति का.. धन्यवाद
Very nice sir
अतिशोभनीय सोमवीर जी
ॐ* गुरुदेव!
आपने विपर्यय वृत्ति की बहुत ही उत्तम व्याख्या की है।
ये वृत्ति हमारे समझ में नहीं आ रही थी, परंतु आपने तो इसे अत्यंत सरल शब्दों में स्पष्ट कर दिया। इसके लिए आपका हृदय से बहुत_ बहुत आभार ।
Badiya guru ji
Very nice. Please suggest the ashana and pranayam to resolve these kind of virrtiya.