प्रत्यक्षानुमानागमा: प्रमाणानि ।। 7 ।।

शब्दार्थ :- प्रत्यक्ष, ( जो हमारी आँखों के सामने घटित हो रहा है। ) अनुमान, ( किसी के सम्बन्ध में अटकल, अंदाजा या कयास लगाना ) आगम, ( वेद – शास्त्रों द्वारा उपदेशित शब्द या गुरु वाक्य )

 

सूत्रार्थ :- इस सूत्र में प्रमाण वृत्ति के तीन प्रकार बताएं गए हैं।

  1. प्रत्यक्ष,
  2. अनुमान,
  3. आगम

प्रमाण वृत्ति के ही तीन भेद पाए जाते हैं। अन्य किसी भी वृत्ति के भेद नही किए गए हैं। इनके क्लिष्ट और अक्लिष्ट स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है।

 

 प्रत्यक्ष :- प्रत्यक्ष का अर्थ है जिसे हम अपनी इन्द्रियों ( नेत्र, जिह्वा, कर्ण, नासिका, त्वचा ) द्वारा अनुभव करतें हैं। इन्द्रियों द्वारा जिस वस्तु या घटना का हम साक्षात्कार ( प्रत्यक्षीकरण ) करतें हैं। जैसे कि किसी वस्तु को देखना, स्वाद चखना, सुनना, सूँघना, व स्पर्श करना आदि । वह प्रत्यक्ष प्रमाण वृत्ति कहलाती है।

 

प्रत्यक्ष प्रमाण वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-

जब हम किसी दुर्गन्धित स्थान ( बदबूदार सीवरेज, कारखाने, फैक्टरी या गन्दे नाले ) के पास से निकलते हैं। तब हम तीव्र गन्ध ( असहनीय बदबू ) के कारण बहुत कष्ट का अनुभव करतें हैं। उस समय साँस लेने में भी कठिनाई होती है। यह प्रत्यक्ष प्रमाण वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप है।

 

 

प्रत्यक्ष प्रमाण वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :-

इसी प्रकार जब हम किसी सुगन्धित स्थान ( खेतों, उद्यानों, धार्मिक स्थलों, नदियों या पहाड़ों ) के पास से निकलते हैं। तब हम अत्यंत मनमोहक ( आनन्दित करने वाली ) सुगन्ध को अनुभव करतें हैं। उस सुगन्ध के कारण हम स्वंम को ज्यादा तरोताजा ( फ्रेश ) और ऊर्जावान महसूस करतें हैं। यह प्रत्यक्ष प्रमाण वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप है।

 

अनुमान :- किसी भी घटना या वस्तु के विषय में जब हम कोई अटकल, अंदाजा या कयास लगातें हैं। उसे अनुमान कहते हैं।

जैसे कि नदी में पानी के मैले रंग व बढ़ते स्तर को देखकर यह अंदाजा लगाना कि पीछे पहाड़ों में कही वर्षा हुई है। यह अनुमान प्रमाण वृत्ति होती है।

 

अनुमान प्रमाण वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-

जब कोई व्यक्ति किसी हिंसक जानवर को अपनी तरफ आते देखकर । यह अनुमान लगाता है कि यह मुझे हानि पहुँचाएगा। इससे वह व्यक्ति दुःख का अनुभव करता है। यह अनुमान प्रमाण वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप है।

 

अनुमान प्रमाण वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :- जब पानी न मिलने से कोई व्यक्ति प्यास से व्याकुल  होता है । और उसी समय कही से पानी के झरने की आवाज उसे सुनाई पड़ती है। तब वह झरने के पास में होने का अंदाजा लगाकर ।   अपनी प्यास बुझाने का सुखद अनुभव करता है। यह अनुमान प्रमाण वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप है।

 

आगम :- वेदशास्त्रों में उपदेशित शब्दों या गुरु ( जिनको विषय का पूर्ण एवं यथार्थ ज्ञान होता है। ) वाक्यों को शब्द या आगम प्रमाण माना गया है।

जैसे पूर्ण एवं परिपक्व गुरु किसी बात को कहता है, तो उसे प्रमाण के तौर पर माना जाता है। ठीक इसी प्रकार वेद – शास्त्रों के उपदेशों को भी प्रमाण माना गया है। इस प्रकार के प्रमाण को आगम अथवा शब्द प्रमाण वृत्ति कहा जाता है।

 

आगम प्रमाण वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-

जब हमें वेदादि ग्रन्थों के पढ़ने से पता चलता है कि पाप कर्म करने से मनुष्य को निकृष्ट ( नीची ) योनियों  में जन्म मिलता है। तब व्यक्ति उन शब्दों को पढ़कर दुःख का अनुभव करता है।            यह आगम प्रमाण वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप कहलाता है।

 

आगम प्रमाण वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :-

जब वेद, योग  आदि शास्त्र  पढ़ने से पता चलता है,  कि समाधि  की प्राप्ति होने पर व्यक्ति को परमानन्द  की अनुभूति होती है।

तब व्यक्ति उन शब्दों को पढ़कर सुख का अनुभव करता है। यह आगम प्रमाण वृत्ति  का अक्लिष्ट  स्वरूप है।

 

आगे विपर्यय वृत्ति का स्वरूप बताया गया है।

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  1. ?आचार्य जी वृत्तिको इतने सरल रूप मे प्रस्तुत करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद आचार्य जी ।।

  2. अति सुन्दर व सरल व्याख्या गुरुदेव!
    आपका हृदय से आभार।????????????????

  3. Om sir patanjali yoga sutra ka itni Saral bhasha main samjhaya hai aapne ki sare sutra yaad ho jayenge Asa lagta h ….Thank you sir

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