प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतय: ।। 6 ।।

शब्दार्थ :- प्रमाण, ( यथार्थ ज्ञान ) विपर्यय, ( मिथ्या अर्थात विपरीत ज्ञान ) विकल्प, ( कल्पना करना ) निद्रा, ( जागृत एवं स्वप्न्न से रहित तीसरी अवस्था ) स्मृति, ( भूतकाल के अनुभवों को पुनः याद करना )

 

सूत्रार्थ :- इस सूत्र में प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा, और स्मृति नामक पाँच वृत्तियों के नामों की चर्चा की गई है।

 

व्याख्या :- महर्षि पतंजलि ने वृत्तियों की संख्या पाँच बताई है। जो कि इस प्रकार हैं :-

 

  1. प्रमाण :- जिस साधन के द्वारा हमें किसी भी पदार्थ या वस्तु का यथार्थ ( असली , सही ) ज्ञान प्राप्त होता है वह प्रमाण कहलाता है। बिना प्रमाण के किसी भी पदार्थ या वस्तु के वास्तविक स्वरूप को नही समझा जा सकता है। अतः प्रमाण वास्तविक ज्ञान प्राप्त करवाने का साधन है।

 

इसके तीन भेद कहे गए हैं :- 1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान, एवं 3. आगम । जिनकी विस्तृत चर्चा हम आगामी सूत्र में करेंगें।

 

  1. विपर्यय :- विपर्यय का अर्थ है मिथ्या या झूठा ज्ञान। जिस वृत्ति से हमें किसी पदार्थ का सही ज्ञान न होकर उसके विपरीत ज्ञान होता है तब उसे विपर्यय कहा है।

 

  1.  विकल्प :- जब किसी पदार्थ या वस्तु के सामने उपस्थित न होने पर भी उस वस्तु का विचार करना विकल्प कहलाता है। यह शब्द से उत्पन्न होता है।

 

  1.  निद्रा :- शरीर की जागृतस्वप्न्न अवस्था से रहित जो स्थिति होती है उसे निद्रा कहते हैं।

 

  1.  स्मृति :- भूतकाल में अनुभव किए गए विषयों ( घटनाओं ) को पुनः स्मरण ( याद ) करना स्मृति वृत्ति कहलाती है।

 

उपर्युक्त सभी वृत्तियों का इनके क्लिष्ट और अक्लिष्ट स्वरूप के साथ वर्णन आगामी सूत्रों में बताया गया है।

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  1. Prnam Aacharya ji. .. we are just an empty box , we will be filled (contained) by all the effort done by you. .. we never have that special word to thank you. .. what we have that is all the pure blessings and wishes …..

  2. Dr. Ji namaste.
    Bahot sidhe aur saral bhasha me Vruti ke bareme aapne jankari di hai.
    Dhanyawad.

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