तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीज: समाधिः ।। 51 ।।
शब्दार्थ :- तस्य, ( उसके ) अपि, ( भी ) निरोधे, ( रुकने से ) सर्व, ( सभी ) निरोधात्, ( चित्त वृत्तियों का भी निरोध हो जाने से अर्थात सभी चित्त वृत्तियों के रुक जाने से ) निर्बीज:, ( निर्बीज ) समाधि:, ( समाधि होती है । )
सूत्रार्थ :- उस ऋतम्भरा प्रज्ञा ( बुद्धि ) से उत्पन्न संस्कारों के भी रुक जाने पर, सभी संस्कारों रुक जाते हैं । वह निर्बीज समाधि की अवस्था होती है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में जीवात्मा या जीव की समाधि अथवा मोक्ष की अवस्था को बताया गया है ।
जब ऋतम्भरा प्रज्ञा जागृत होती है तो उससे उत्पन्न संस्कार अन्य दूसरे संस्कारों को रोकने वाले होते हैं । लेकिन इसके भी लम्बे अभ्यास व पर – वैराग्य द्वारा साधक की ऋतम्भरा प्रज्ञा से उत्पन्न संस्कारों में भी आसक्ति खत्म हो जाती है ।
इस अवस्था में योगी साधक मुक्त पुरुष हो जाता है । किसी भी प्रकार का कोई संस्कार या विचार उसमें नहीं होता है । इसीलिए उसकी इस स्थिति को निर्बीज समाधि कहा है । निर्बीज का अर्थ है जो चित्त के संस्कार हैं उनका सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो जाना । या उन सभी संस्कारों का दग्ध बीज हो जाना ।
दग्ध बीज का अर्थ होता है किसी भी पदार्थ की सत्ता का समूल ( पूर्ण ) रूप से विनाश हो जाना ।
उदाहरण स्वरूप :- जब हम किसी भी पेड़ या पौधे को उगाने के लिए उसका बीज भूमि के अन्दर गाड़ देते हैं । और फिर उपयुक्त खाद, मिट्टी व पानी द्वारा उस बीज से पेड़ या पौधा तैयार करते हैं । लेकिन यदि हम उस पेड़ के बीज को अग्नि में जलाकर या पानी में उबालकर, उसे मिट्टी के अन्दर डालेंगें तो क्या उससे पौधा तैयार होगा ? आपका उत्तर होगा नहीं । क्योंकि जब किसी भी पौधे या पेड़ के बीज को हम जला या उबाल देते हैं तो उससे उसकी प्रजनन क्षमता खत्म हो जाती है । यानी उस जले हुए या उबले हुए बीज से कभी भी कोई पेड़ या पौधा तैयार नहीं हो सकता । ठीक इसी प्रकार जब उच्च वैराग्य के द्वारा सभी संस्कारों को दग्ध बीज कर दिया जाता है तो वह अवस्था निर्बीज अर्थात बिना बीज की होती है ।
इसी अवस्था को समाधि, मोक्ष या परमानन्द कहा जाता है ।
?प्रणाम आचार्य जी! समाधिपाद के सभी सूत्रो को अत्यंत रोचक व्याख्या के साथ – साथ इन योग सूत्रो के सरलीकृत भाषा मे सुन्दर अनुवाद को प्रस्तुत करने व इनके विशेष महत्व के पालन से हम सभी के जीवन को और भी सुन्दर व साथ॔क बनाने के लिए आपको बारम्बार धन्यवाद व चरण स्पर्श सादर प्रणाम आचार्य जी! ओ3म् सुन्दर ??
Hindi me dushare tun pad nahi hai ?
Bahot achha hai
Ek hi pad ko dekh sakte dushre pad hindi me nahi dikh raha
Thanku sir.. u doing a brilliant job for us.. nd u r awesome sir again thanku ????
Thank you Sir
Pranaam Sir! ??Samadhi pada sutra’s we’re made really easy to understand by you. Thanks a lot
Thanks g
Sir u explained samedipadh very well …
Nice example guru ji.
बहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी
Thank you Sir
sutra no.5 to 47 are not opening
Thanks a lot sir 🙏🏻🙏🏻
Thankyou so much sir 🙏