वृत्तय: पञ्चतय्य: क्लिष्टाक्लिष्टा: ।। 5 ।।
शब्दार्थ :- वृत्तय: ( वृत्तियाँ ) पञ्चतय्य ( पाँच प्रकार की ) क्लिष्टा ( क्लेशों या कष्टों को उत्पन्न करने वाली ) अक्लिष्टा: ( क्लेशों या कष्टों को नष्ट करने वाली )
सूत्रार्थ :- इस सूत्र में वृत्तियों की संख्या पाँच बताई गई है । पाँचों वृत्तियों के क्लिष्ट और अक्लिष्ट भेद ( प्रकार ) होने के कारण प्रत्येक वृत्ति दो – दो प्रकार की होती है।
व्याख्या :- क्लिष्ट और अक्लिष्ट का स्वरूप :-
1. क्लिष्ट :- जो वृत्तियाँ व्यक्ति को अज्ञानता, अधर्म, और अवैराग्य की ओर ले कर जाती हैं वें क्लिष्ट वृत्तियाँ होती है। तमोगुण * से प्रभावित होने के कारण यें राग, द्वेष आदि क्लेशों को बढ़ाती हैं । इन क्लिष्ट वृत्तियों को योग मार्ग में बाधा उत्पन्न करने वाली माना गया है।
2. अक्लिष्ट :- जो वृत्तियाँ व्यक्ति को ज्ञान, धर्म, और वैराग्य की ओर ले कर जाती हैं। वें अक्लिष्ट वृत्तियाँ कहलाती हैं। सत्त्वगुण से प्रभावित होने के कारण यें अविद्या आदि क्लेशों को समाप्त करने वाली होती हैं। इन अक्लिष्ट वृत्तियों को योग मार्ग में सहायक माना गया है।
( नोट ) * सत्त्वगुण, रजोगुण, व तमोगुण से चित्त का निर्माण हुआ है। जिससे वह त्रिगुणात्मक कहलाता है। चित्त के त्रिगुणात्मक होने से उसमें उत्पन्न होने वाली वृत्तियाँ भी इन तीन गुणों से युक्त होती हैं। इसलिए तमोगुण के प्रभावी होने से वृत्तियाँ क्लिष्ट ( दुःखदायी ) और सत्त्वगुण के प्रभावी होने से अक्लिष्ट ( सुखदायी ) स्वरूप वाली होती हैं।
आगे इन वृत्तियों के नामों का वर्णन किया हैं।
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Prnam. Aacharya ji. ..koti vandan .. gyan ko is uttam swrup me hum sub tk lane ke liye Aapko barmbar dhanyavad. ..
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मेरा गुरदेव को प्रणाम सरल शब्दों में सही एवम् रोचक जानकारी के लिए धनयवाद गुरदेवहमारा मार्गदर्शन कराने के लिए आपका आभार
ॐ गुरुदेव!
अति उत्तम व्याख्या की है आपने ,आपका बहुत_ बहुत आभार हम लोगों का मार्गदर्शन करने हेतु।
Perfect guru ji
Thank you sir