ता एव सबीज: समाधि: ।। 46 ।।

 

शब्दार्थ :- ता एव, ( वे सभी समापत्तियाँ अर्थात सवितर्क, निर्वितर्क, सविचारा व निर्विचारा ही ) सबीज:, ( बाह्य वस्तुओं का आश्रय लेने वाली सबीज ) समाधि:, ( समाधियाँ हैं ।)

 

सूत्रार्थ :- बाहरी वस्तुओं ( स्थूल एवं सूक्ष्म ) का सहारा लेने वाली ये सभी समापत्तियाँ ही सबीज समाधि कहलाती हैं ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में सबीज समाधि के चार भेदों अर्थात प्रकारों का वर्णन किया गया है । सबीज का अर्थ है जिसमें किसी बाहरी वस्तु का सहारा किया जाता है । जब साधक ध्येय अर्थात लक्ष्य के रूप में किसी बाहरी वस्तु या पदार्थ का सहारा लेता है । तो वह सबीज समाधि कहलाती है । पूर्व में वर्णित सभी समापत्तियाँ सबीज समाधि के ही भेद कहे गए हैं । इन समापत्तियों में से पहली दो अर्थात सवितर्क और निर्वितर्क हैं ।

 

इनमें से सवितर्क और निर्वितर्क समापत्तियाँ स्थूलभूतों जैसे पेड़- पौधों या पशु – पक्षियों में की जाती है । और सविचारा व निर्विचारा समापत्तियाँ सूक्ष्मभूतों जैसे तन्मात्राओं व  इन्द्रियों आदि में की जाती है ।

 

इस प्रकार बाहरी वस्तुओं का सहारा लेने के कारण इनको सबीज समाधि कहा जाता है ।

विशेष :-

इस सबीज समाधि के चार प्रकार होते हैं । इस सबीज समाधि को ही सम्प्रज्ञात समाधि माना गया है । और निर्बीज समाधि को ही असम्प्रज्ञात समाधि माना जाता है ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    सबीज समाधि की व्याख्या आपने अत्यंत ही सहज शब्दों में कर दिया ,जिसे पहले समझना अति कठिन प्रतीत होता था।
    अस्तु ! आपको हृदय से कोटि कोटि नमन।

  2. ॐ गुरुदेव*
    सबीज समाधि की व्याख्या आपने अत्यंत ही सहज शब्दों में कर दिया ,जिसे पहले समझना अति कठिन प्रतीत होता था।
    अस्तु ! आपको हृदय से कोटि कोटि नमन।

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