सूक्ष्म विषयत्वं चालिङ्गपर्यवसानम् ।। 45 ।।

 

शब्दार्थ :- च, ( और ) सूक्ष्म विषयत्वम्, ( सूक्ष्म विषयों की सूक्ष्मता ) अलिङ्ग, ( प्रकृति ) पर्यवसानम्, ( पर्यन्त रहती है । )

 

सूत्रार्थ :- सूक्ष्म पदार्थों की सूक्ष्मता प्रकृति पर्यन्त रहती है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में सूक्ष्म विषयों सूक्ष्मता की अवधि अर्थात समय सीमा बताई गई है । कि कब तक उनकी विद्यमानता रहती है । यहाँ पर महर्षि पतंजलि ने सांख्य सूत्र के सिद्धान्त को माना है । सांख्य सूत्र में  महर्षि कपिल ने प्रकृति के जिन तत्त्वों की बात कही है । यहाँ योगसूत्र भी उनका समर्थन करता है । इसीलिए तो सांख्य एवं योग को एक साथ उच्चारित ( बोला ) किया जाता है ।

 

इस सूत्र में सूक्ष्म पदार्थों की महत्ता को दर्शाया गया है । प्रत्येक स्थूल वस्तु या पदार्थ का निर्माण सूक्ष्म पदार्थ से ही होता है । प्रत्येक दिखने वाली वस्तु के पीछे उसके न दिखने वाले सूक्ष्म रूप का ही योगदान होता है । जो भी हमें दिखाई देता है वह स्थूल कहलाता है और जो दिखाई नही देता वह उस स्थूल का सूक्ष्म रूप होता है । इसको समझने के लिए हम सांख्य के सिद्धान्त की बात करते हैं –

 

पृथ्वी स्थूलभूत है और पृथ्वी का सूक्ष्म रूप गन्ध नामक तन्मात्रा होती है । इसी प्रकार जल नामक स्थूलभूत का सूक्ष्म रूप उसकी रस नामक तन्मात्रा है । अग्नि का सूक्ष्म अंश रूप नामक तन्मात्रा है । वायु का सूक्ष्म रूप स्पर्श नामक तन्मात्रा है । और आकाश का सूक्ष्म रूप शब्द नामक तन्मात्रा होती है ।

 

इसको हम और भी आसान करने के लिए इस प्रकार समझ सकते हैं कि गन्ध का प्रतिनिधित्व पृथ्वी, रस प्रतिनिधित्व जल, रूप का प्रतिनिधित्व अग्नि, स्पर्श का प्रतिनिधित्व वायु व शब्द का प्रतिनिधित्व आकाश करता है ।

यदि पृथ्वी नामक तत्त्व न हो तो हमें गन्ध का आभास ( पता चलना ) नहीं हो सकता । ठीक इसी प्रकार जल के बिना रस का, अग्नि के बिना रूप का, वायु के बिना स्पर्श का व आकाश के बिना शब्द का कोई अस्तित्व नहीं है ।

 

अब उन तन्मात्राओं का भी सूक्ष्म रूप अहंकार होता है । अहंकार का सूक्ष्म रूप महत्तत्त्व अर्थात बुद्धि होता है । और उस महत्तत्त्व का भी सूक्ष्म रूप अलिङ्ग अर्थात प्रकृति होती है । इस पृथ्वी को अलिङ्ग इसीलिए कहा है क्योंकि इसका कोई भी लिंग अर्थात सूक्ष्म रूप नहीं है । प्रकृति से भी परे अर्थात सूक्ष्म पुरुष को माना गया है लेकिन वह पुरुष प्रकृति का उपादान कारण ( उसको पैदा करने वाला ) नहीं है । वह केवल उसका निमित्त कारण होता है ।

 

इसलिए सभी स्थूल पदार्थों की विद्यमानता उनके सूक्ष्म पदार्थों में व सभी सूक्ष्म पदार्थों की सूक्ष्मता प्रकृति पर्यन्त अर्थात प्रकृति के रहने तक होती है ।

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