एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता ।। 44 ।।

 

शब्दार्थ :- एतयैव, ( इसी से अर्थात सवितर्क व निर्वितर्क समापत्तियों से ही ) सूक्ष्मविषया ( सूक्ष्म पदार्थों में की जाने वाली को ) सविचारा, ( सविचार ) च, ( और )  निर्विचारा, ( निर्विचार ) व्याख्याता, ( की व्याख्या हुई अर्थात वर्णन हुआ समझना चाहिए । )

 

सूत्रार्थ :- सवितर्क व निर्वितर्क समापत्तियों के वर्णन से ही सूक्ष्म विषयों में की जाने वाली सविचार और निर्विचार समापत्तियों का वर्णन मानना चाहिए ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र का अर्थ इससे पहले वाले सूत्र के अनुसार ही है । जिस प्रकार सवितर्क और निर्वितर्क समापत्तियों का वर्णन किया गया था । ठीक उसी प्रकार से उनके सूक्ष्म विषय को सविचार और निर्विचार का वर्णन किया है । जैसे सवितर्क समापत्ति में स्थूलभूतों ( पृथ्वी, जल व  आकाश आदि ) में चित्त को लगाने से उनके शब्द, अर्थ व ज्ञान के मिश्रण का आभास होता है । ठीक उसी प्रकार जब हम अपने चित्त को सूक्ष्मभूतों ( गन्ध, रस व शब्द आदि ) में लगाते हैं तो उसमें भी हमें सवितर्क समापत्ति की भाँति ही उस पदार्थ के नाम, रूप व ज्ञान आदि का अनुभव होता है । यह सविचार समापत्ति कहलाती है ।

 

और जिस प्रकार से हमें निर्वितर्क समापत्ति में शब्द, व ज्ञान का अनुभव न होकर सीधे ही उस वस्तु के अर्थ का ध्यान रहता है । ठीक उसी प्रकार निर्विचार समापत्ति में भी जब सूक्ष्मभूतों में चित्त लगाने से हमें केवल उन सूक्ष्मभूतों के यथार्थ स्वरूप अर्थात केवल उनका ही अनुभव होता है । उसके शब्द, व ज्ञान का अभाव हो जाता है । इस अवस्था को निर्विचार समापत्ति कहते हैं ।

 

मूल रूप से सवितर्क और निर्वितर्क समापत्ति व सविचार और निर्विचार समापत्तियों में केवल स्थूल ( सवितर्क और निर्वितर्क )  व सूक्ष्म ( सविचार और निर्विचार ) का ही भेद है । इसके अतिरिक्त इन सबका स्वरूप एक ही है ।

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