तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पै: संकीर्णा सवितर्का समापत्ति: ।। 42 ।।
शब्दार्थ :- तत्र, ( उनमें अर्थात समापत्तियों में ) शब्द, ( शब्द अर्थात जो हम बोलते हैं ) अर्थ, ( बोले हुए शब्द का मतलब और ) ज्ञान, ( उसकी सही जानकारी के ) विकल्पै:, ( प्रकारों से ) संकीर्णा, ( युक्त या मिली हुई ) सवितर्का, ( सवितर्क ) समापत्ति:, ( समापत्ति होती है । )
सूत्रार्थ :- उन समापत्तियों में शब्द, उसके अर्थ व उसके ज्ञान अर्थात उसकी सही जानकारी आदि प्रकारों से युक्त सवितर्क समापत्ति कहलाती है ।
व्याख्या :- यहाँ पर सवितर्क समापत्ति के लक्षण को शब्द, अर्थ एवं ज्ञान के द्वारा बताया गया है । जब योगी साधक गाय आदि स्थूल पदार्थों का साक्षात्कार करता है तो उसे शब्द, उसका अर्थ व उसका ज्ञान एक जैसा ही दिखाई देता है । लेकिन वास्तव में इन तीनों का स्वरूप अलग- अलग होता है । जब हम किसी पदार्थ या वस्तु को उसके नाम से पुकारते हैं, तो उस समय हमारे चित्त में शब्द, अर्थ व ज्ञान की स्मृति एक रूप में बनी रहती है । जबकि वह शब्द, अर्थ व ज्ञान तीनों अपने – अपने स्वरूप के कारण अलग- अलग होते हैं ।
उदाहरण स्वरूप :- जैसे – “गाय शब्द, गाय शब्द का अर्थ व गाय शब्द का ज्ञान” यह तीनों ही अलग – अलग हैं । इनमें से गाय एक शब्द है जैसे किसी भी वस्तु का कोई न कोई नाम तो अवश्य ही होता है । फिर उस नाम का कोई अर्थ भी होता है जैसे गाय का अर्थ है एक ऐसा पशु जिसकी चार टांगे, दो आँखे, दो सींग व एक पूँछ आदि होती हैं । उसके बाद उसके गुणों के द्वारा ही उस वस्तु का बोध अर्थात ज्ञान होता है । जैसे कि उपर्युक्त गुण किस प्राणी में होते हैं ।
यहाँ पर हमारे चित्त में शब्द, अर्थ व ज्ञान का मिला- जुला चित्र उभरता है । अर्थात तीनों की मिश्रित अवस्था होती है । यही सवितर्क समापत्ति कहलाती है ।
?Prnam Aacharya ji..??? dhanyavad ?
Thanku so much sir??
Thank you Sir
गुरुजी प्रणाम आपका जो ज्ञान हमें मिल रहा है इसके लिए हम भगवान के शुक्रगुजार हैं और प्रार्थना करते हैं कि आपको और ओजस्वी तेजस्वी गुणवान और स्वस्थ बनाएं
Thank you so much sir
Pranaam Sir!?? Descriptive explanation makes it easy to understand.
Nice description about savitark samapati guru ji.