परमाणुपरममहत्त्वान्तोऽस्य वशीकार: ।। 40 ।।
शब्दार्थ :- परमाणु, ( अति सूक्ष्म या छोटे से छोटा ) परममहत्त्वान्त:, ( अति दीर्घ या बड़े से बड़ा आकाश जितना ) अस्य, ( इसका ) वशीकार:, ( पूर्ण नियंत्रण हो जाता है । )
सूत्रार्थ :- इस चित्त का छोटे से छोटे अर्थात अणु जितनी छोटी वस्तु या बड़े से बड़ी अर्थात आकाश जितनी बड़ी वस्तुओं में भी वशीकार अर्थात नियंत्रण हो जाता है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में चित्त को स्थिर करने के बाद उसका क्या फल होता है ? इसका वर्णन किया गया है । पूर्व में वर्णित चित्त को एकाग्र करने के उपायों के पालन से साधक का चित्त शीघ्र ही एकाग्र हो जाता है । उन उपायों का निरन्तर अभ्यास करने से साधक का अपने चित्त पर पूर्ण रूप से अधिकार हो जाता है ।
जब साधक का अपने चित्त पर पूरी तरह से अधिकार या नियंत्रण हो जाता है । तो वह साधक अपने चित्त को छोटे से छोटे अणु में भी स्थिर अथवा एकाग्र कर सकता है । अणु वह पदार्थ होता है जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते ।
और साथ ही साधक अपने चित्त को बड़ी से बड़ी वस्तु जैसे आकाश आदि में भी स्थिर अथवा एकाग्र कर सकता है ।
इस सूत्र का भाव यह है कि जब साधक चित्त को एकाग्र करने के उपायों का अभ्यास करके उनमें सफलता प्राप्त कर लेता है । तो उसका अपने चित्त पर पूरा नियंत्रण हो जाता है । इस नियंत्रण से साधक के अन्दर ऐसी शक्ति आती है कि वह किसी भी पदार्थ या तत्त्व में अपने चित्त को लगाने का प्रयास करेगा , तो वह चित्त शीघ्रता से उसमें लग जाएगा । फिर चाहे वह अणु जितना छोटा या आकाश जितना बड़ा ही क्यों न हो ।
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