वृत्तिसारूप्यमितरत्र  ।। 4 ।।

 

शब्दार्थ :-  इतरत्र ( इससे दूसरी अवस्था में ) वृत्तिसारूप्यम् ( वृत्तियों के समान रूप वाला होता है। )

 

सूत्रार्थ :- इससे दूसरी अवस्था में जब दृष्टा ( जीवात्मा ) को अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान नही होता है। उस समय दृष्टा अपनी चित्तवृत्तियों के अनुरूप ही अपना स्वरूप समझने लग जाता है।

 

व्याख्या :- साधनाकाल में जब तक साधक की चित्त वृत्तियाँ सक्रिय ( प्रभावी ) रहती है।  उस अवस्था को व्युत्थानकाल कहा है।

 

व्युत्थानकाल का स्वरूप :-

 

इस काल में साधक चित्त की वृतियों का निरोध न कर पाने के कारण जैसी भी वृत्ति उस काल में होती है। उसी वृत्ति को ही वह अपना स्वरूप मानने लगता है। जिससे वह  चित्त की वृत्तियों व अपने स्वरूप में किसी प्रकार का भेद नही कर पाता है।

उदाहरण स्वरूप:-

जब किसी भी कारण से हम क्रोधित होते है, तब उस क्रोध को ही हम अपना स्वरूप समझने लगते हैं। परन्तु वह क्रोध तो मात्र चित्त की वृतियों का स्वरूप होता है। क्रोधित होना तो जीवात्मा का स्वरूप है ही नही ।

 

ठीक इसी प्रकार जब हम अपने प्रिय या प्रेयसी के साथ समय बिताते हैं। तब हमें एक सुखद अहसास की अनुभूति होती है। उसको भी हम अपना स्वरूप मानने लगते है। और हमें चारों और प्रेम ही प्रेम दिखाई देता है। परन्तु यह राग से उत्पन्न हुई वृत्ति मात्र होती है।

 

जबकि राग एक क्लेश है। और क्लेशों से पूर्ण रूप से छूटने से ही दृष्टा ( जीवात्मा ) अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित होता है।

 

इस प्रकार जीवात्मा अज्ञानता के कारण चित्त की वृतियों के स्वरूप को ही अपना स्वरूप समझता रहता है। जब तक चित्त की वृत्तियों का सर्वथा निरोध नही हो जाता, तब तक दृष्टा अपने स्वरूप में स्थित नही हो सकता। इसीलिए चित्त की वृत्तियों  के निरोध को ही योग अथवा समाधि कहा है।

 

चित्त वृत्तियाँ :-

ये चित्त वृत्तियाँ क्या हैं? तथा इनकी संख्या कितनी है? इनको महर्षि पतंजलि  अगले सूत्र में बताते हैं।

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  1. Prnam Aacharya ji. .. The meaning of the Sutra is very awakening. .. extremely well elaborated Sutra … Dhanyavad Aacharya ji. .. Prnam

  2. बहुत ही सुंदर सरल और सहज ढंग से आपने सूत्र का जो विश्लेषण किया है वह अपने आप में उत्कृष्ट है ,सराहनीय है

  3. ? ॐ*गुरुदेव*?
    बहुत ही सरल शब्दों में आपने प्रस्तुत सूत्र को समझाया है । आपका बहुत _बहुत आभार ,आप ऐसे ही हम जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन करते रहें।
    पुनः प्रणाम! ?

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