स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा ।। 38 ।।

 

शब्दार्थ :- वा, ( अथवा ) स्वप्न, ( सोते हुए आने वाला सपना ) निद्रा, ( नींद ) ज्ञान, ( किसी वस्तु या किसी विषय के स्वरूप को जानना या उसकी जानकारी होना ) आलम्बनम् , ( सहारा या आश्रय लेना )

 

सूत्रार्थ :- स्वप्न और निद्रा के ज्ञान का आश्रय लेने से भी चित्त में स्थिरता आती है ।

व्याख्या :- स्वप्न वह अवस्था होती है जब व्यक्ति सो रहा होता है । और सोते हुए कोई विचार या संस्कार उसके चित्त में चल रहा होता है । उस विचार या संस्कार की अनुभूति ( अहसास ) होना ही स्वप्न अथवा सपना कहलाता है ।

स्वप्न कई बार अच्छे होते हैं तो कभी बुरे भी । अच्छे स्वप्न अथवा सपने वो होते हैं जिन्हें देखकर अच्छा अहसास होता है । और बुरे सपने वो होते हैं जिन्हें देखकर बुरा अहसास होता है । अच्छे स्वप्न देखने से हमारा चित्त एकाग्र व प्रसन्न होता है । और बुरे स्वप्न देखने से हमारा चित्त विचलित व दुःखी हो जाता है ।

इसलिए जब हम कोई अच्छा स्वप्न देखते हैं तो हमारा ऐसा मन करता है कि जो स्वप्न में अच्छा अहसास हुआ था वह ऐसा ही बना रहे । यानी कि अच्छे स्वप्न की वह अवस्था निरन्तर बनी रहे । इस प्रकार सोचने से भी हमें प्रसन्ता का अनुभव होता है ।

जब योगी साधक इस प्रकार के अच्छे स्वप्न का सहारा या आश्रय ले लेता है तो उससे उस साधक का चित्त एकाग्र व प्रसन्न हो जाता है ।

 

दूसरा निद्रा अर्थात नींद वह अवस्था होती है जब हमारी सभी इन्द्रियाँ विश्राम कर रही होती हैं । और हमारा शरीर बिल्कुल निढ़ाल पड़ा होता है । शरीर की यह अवस्था निद्रा अथवा नींद कहलाती है । नींद शरीर की वह स्थिति होती है जिसमें कभी स्वप्न अथवा सपने नहीं आते हैं । इसी को प्रगाढ़ अथवा गाढ़ी नींद कहा जाता है ।

 

जब शरीर में सत्त्वगुण की मात्रा बढ़ती है तो यह सात्विक निद्रा आती है । रजोगुण से स्वप्न आते हैं । और तमोगुण से आलस्य व प्रमाद बढ़ने से शरीर विचलित रहता है ।

कई बार आपने भी ऐसा महसूस किया होगा कि जब आप सुबह उठते हैं तो बड़ा अच्छा – अच्छा लगता है । और आपको खुशी होती है । तब आपने कहा होगा कि आज तो मुझे बहुत अच्छी नींद आयी और अब मैं अपने आप को बिल्कुल तरोताजा महसूस कर रहा हूँ ।

इस प्रकार का अहसास बताता है कि आप अच्छे से सोए हो । इसके विपरीत कई बार आपने महसूस किया होगा कि सुबह उठते हुए आपके शरीर में आपको भारीपन लगा होगा । आप उस समय अपने आप को दुःखी महसूस कर रहे होते हो । और तब आप कहते हो कि आज मुझे अच्छी नींद नहीं आयी ।

उपर्युक्त वर्णित निद्रा में से जब हमें अच्छी व गाढ़ी नींद आती है तो उससे भी हमारा चित्त एकाग्र व प्रसन्न हो जाता है । इस प्रकार जब हमारा चित्त अच्छी नींद से एकाग्र हो जाता है तो वह उस अच्छी नींद का सहारा या आश्रय लेने से हमारा चित्त पुनः एकाग्र व प्रसन्न हो जाता है ।

 

अतः हमारा चित्त अच्छे स्वप्न व अच्छी प्रगाढ़ निद्रा लेने से भी एकाग्र होता है ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी! सूत्र 38 के माध्यम से निद्रा के महत्ता का वण॔न करने के लिए आपका धन्यवाद ?

  2. धन्यवाद सोमवीर जी भाई साहब , जय श्री राम

  3. धन्यवाद गुरुदेव हम आभारी है आपके जो हमें आपका मार्गदर्शन मिल रहा है हम मुझे आपके व्याख्यान भी बहुत प्रेरणा देते हैं आपका धन्यवाद नमस्ते ji

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