तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यास: ।। 32 ।।

 

शब्दार्थ :- तत् , ( उन ) प्रतिषेधार्थम् , ( विघ्नों के दूर करने या उनके नाश के लिए ) एकतत्त्वाभ्यास: ( एक तत्त्व का अभ्यास करना चाहिए ।)

 

सूत्रार्थ :- उन पूर्व में कहे गए योगमार्ग के विघ्नों या बाधाओं को दूर करने या उनका नाश करने के लिए साधक को एक तत्त्व अर्थात उस ईश्वर के चिन्तन का अभ्यास करना चाहिए ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में ऊपर वर्णित सभी योग विघ्नों व उप विघ्नों को दूर करने के लिए एक ही तत्त्व के अभ्यास करने की बात कही गई है । यहाँ पर एक तत्त्व से अभिप्राय ईश्वर से है । ईश्वर ही वह एक तत्त्व है जिसके चिन्तन, मनन या उपासना मात्र से हमारे सारे दुःखों व विघ्नों का नाश हो सकता है । इसलिए यहाँ पर एक तत्त्व के अभ्यास का निर्देशन किया है ।

 

यहाँ पर एक तत्त्व का अभ्यास ईश्वर में ही क्यों करना चाहिए ? किसी अन्य पदार्थ में क्यों नही ? एक तत्त्व के अभ्यास में ईश्वर को इसलिए कहा गया है क्योंकि ईश्वर सर्वज्ञ है अन्य सभी अल्पज्ञ हैं । ईश्वर दुःखों से रहित है अन्य सभी दुःखों से युक्त हैं । ईश्वर दोष रहित है अन्य सभी दोष युक्त हैं । इस प्रकार ईश्वर सबकुछ जानने वाला, दुःखनाशक, सुखस्वरुप, दोषमुक्त है ।

 

साधना काल ( समय ) में जब साधक किसी एक तत्त्व का ध्यान या चिन्तन करता है तो वह उसके स्वरूप में अपने स्वरूप को देखता है । इसलिए यदि साधक किसी ऐसे तत्त्व का ध्यान या चिन्तन करेगा जो क्रमशः अल्पज्ञ, दुःखी, व दोषयुक्त होगा । तो साधक स्वंय को भी वैसा ही बनाने का प्रयास करेगा ।

 

इस सूत्र में कहा गया है कि एक तत्त्व के अभ्यास से साधक के सारे विघ्न व उप विघ्नों का नाश होता है । इससे भी हम समझ सकते हैं कि ईश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई भी ऐसा तत्त्व या पदार्थ नही है जो कि इन सभी विघ्नों या उप विघ्नों से प्रभावित न होता हो ।

जब ईश्वर के अतिरिक्त कोई ऐसा है ही नही तो ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य के ध्यान या चिन्तन का औचित्य ( मतलब ) नही रहता । ईश्वर ही हैं जो सभी विघ्नों और उप विघ्नों से पूर्णतय ( पूरी तरह ) रहित है ।

 

इसीलिए सभी विघ्नों के विनाश के लिए साधक को एक तत्त्व ( ईश्वर ) का ही चिन्तन या ध्यान करना चाहिए ।

अगले सूत्र में चित्त को प्रसन्न करने वाले उपायों का वर्णन किया गया है ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी! इस ईश्वरीमय शुभ ज्ञान के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान आचार्य जी ! ?

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