ततः प्रत्यक्चेतनाधिगमोऽप्यन्तरायाभावश्च ।। 29 ।।
शब्दार्थ :- तत:, ( तब उस ओ३म् नाम के जप से ) प्रत्यक् – चेतन – अधिगम:, ( अन्तरात्मा के वास्तविक स्वरूप के ज्ञान का आगमन होता है ) च ( और ) अन्तराय, ( विघ्न या बाधाओं की ) अभाव, ( समाप्ति ) अपि, ( भी हो जाती है )
सूत्रार्थ :- ओ३म् नाम के जप या उच्चारण से साधक में अन्तरात्मा के वास्तविक स्वरूप के ज्ञान का आगमन होता है । और उसकी सभी बाधाएं या विध्नों की भी समाप्ति हो जाती है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में ईश्वर के मुख्य नाम ओ३म् का अर्थ सहित चिन्तन करने से मिलने वाले फल के विषय में बताया है ।
सूत्रकार कहतें हैं कि उस ओ३म् नाम के जप से साधक को ईश्वर का साक्षात्कार होता है साथ ही योग मार्ग के विघ्न भी समाप्त होते हैं ।
जब साधक ओ३म् शब्द का उच्चारण उसके अर्थ के चिन्तन के साथ करता है । तब उसे ईश्वर का साक्षात्कार होता है । इस साक्षात्कार से साधक में अन्तरात्मा के वास्तविक स्वरूप के ज्ञान का आगमन होता है ।
अन्तरात्मा के ज्ञान के आगमन से साधक के योग मार्ग के सभी विघ्न भी समाप्त हो जाते हैं ।
योग साधना के पथ पर साधक को अनेकों बाधाओं ( व्याधि या रोग आदि ) का सामना करना पड़ता है । इन बाधाओं से साधना में विघ्न पड़ता है । और साधना में विघ्न आने से साधक अपने लक्ष्य तक नही पहुँच पाता है । योग साधना मार्ग की इन बाधाओं को ओ३म् नाम के जप मात्र से समाप्त किया जा सकता है । और साथ ही अपने शुद्ध स्वरूप का भी ज्ञान साधक को होता है ।
अगले सूत्र में इन योग अन्तराय अर्थात योग मार्ग की बाधाओं का उल्लेख किया गया है ।
?Prnam Aacharya ji !सूत्र 29 मे ओ3म् चिंतन के ज्ञान से आत्मा स्वरूप का बोध होने का बहुत ही सुंदर और सरल माग॔ का ज्ञान हमें प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी !?
Thanku sir??
Pranaam Sir! Beautifully described about OM.
Guru ji thanks for knowledge of ohm japa benefits.
It’s too good sir
Om ji thanks sir ji
Great job!
Needs more hands on activities ..
ॐ गुरुदेव*
ॐ शब्द के उच्चारण से होने वाले लाभ का वर्णन हम सब तक प्रेषित करने हेतु आपको बहुत _बहुत साधुवाद।