तज्जपस्तदर्थभावनम् ।। 28 ।।
शब्दार्थ :- तज्जप:, ( उस ओ३म् नाम का जप / उच्चारण ) तदर्थभावनम् , ( उसके नाम का अर्थ सहित चिन्तन / मनन करना ) ।
सूत्रार्थ :- उस ईश्वर के वाचक नाम ( ओ३म् ) का उच्चारण या जप उसके अर्थ सहित चिन्तन के साथ करना चाहिए ।
व्याख्या :- इस सूत्र में ईश्वर के निज नाम ओ३म् के जप / उच्चारण की विधि बताई गई है । पिछले सूत्र में ईश्वर के वाचक नाम का वर्णन किया गया था । और इस सूत्र में उसके जप की विधि को बताते हुए कहा है कि उस ओ३म् नाम का जप उसके अर्थ की भावना के साथ करना चाहिए । अब पहले हम इनके अर्थों को समझते हैं । जप का अर्थ है “किसी शब्द या किसी वाक्य का बार – बार उच्चारण करना” । अर्थ कहते हैं “उसके तात्पर्य या मतलब को” । और भावना से अभिप्राय है “जो वस्तु, शब्द या वाक्य है उसका जो वाच्य अर्थात गुण हैं उन गुणों का चिन्तन व मनन करना” ।
यहाँ ओ३म् शब्द है, उसका अर्थ सर्वज्ञ ( सबकुछ जानने वाला ) है । उस ओ३म् शब्द का उच्चारण अर्थ सहित, चिन्तन के साथ करना ही तज्जपस्तदर्थभावनम् कहलाता है ।
जैसे – ईश्वर या ओ३म् शब्द का उच्चारण उसके अर्थ यानी वह सर्वज्ञ व अन्तर्यामी है आदि गुणों का चिन्तन करना चाहिए ।
इस प्रकार की भावना करने से साधक का चित्त एकाग्र होता है । और ओ३म् के जप से वृतियों का निरोध भी करना चाहिए । ओ३म् के जप व वृतियों के निरोध से परमात्मा के दिव्य ज्ञान / प्रकाश का प्रकटीकरण होता है ।
?प्रणाम आचार्य जी! सूत्र 28 के माध्यम से ओम् शब्द की महिमा का वर्णन करने के लिए आपका धन्यवाद आचार्य जी !?
That’s great work. Technology put to best use.
Prnam Aacharya ji . Sunder
Thanku sir??
Thank you Sir
Nice explanation of ohm japa guru ji
Good explanation
On namaste Somvir ji and thanks
The Best Sir..