तस्य वाचक: प्रणव: ।। 27 ।।

शब्दार्थ :- तस्य, ( उस ईश्वर का ) वाचक:, ( बोला जाने वाला नाम ) प्रणव:, ( ओ३म् / ओम् है । )

 

सूत्रार्थ :- उस ईश्वर  का बोधक  अर्थात ज्ञान करवाने वाला नाम ओ३म् / ओम्  है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में ईश्वर के वाचक अर्थात बोले जाने वाले ओम्  नाम का वर्णन किया गया है ।

जो शब्द किसी वस्तु  या पदार्थ  के अर्थ का बोध  ( ज्ञान या जानकारी ) करवाता है वह उसका ( वस्तु या पदार्थ का ) वाचक’ कहलाता है । और उस शब्द के द्वारा जिस पदार्थ या वस्तु का ज्ञान  होता है वह ‘वाच्य’ कहलाता है । जैसे – ऋषि शब्द वाचक’ है और गेहुँआ वस्त्रों  को धारण करने वाला, लम्बे बाल  व दाढ़ी  रखने वाला तथा कुटिया  में निवास करने वाला व्यक्ति विशेष उसका ‘वाच्य’ है ।

 

वाचक उसे कहतें है जिससे किसी व्यक्ति या वस्तु का ज्ञान  होता है । और वाच्य उसे कहते है जो उस व्यक्ति या वस्तु की ऐसी विशेषताएं  बताए जिससे उस वस्तु या व्यक्ति का ज्ञान स्वतः  ( स्वंम ही ) हो जाए । उपर्युक्त उदाहरण में ऋषि शब्द बोला जाने वाला नाम है । और उसकी वेशभूषा व उसके रहन- सहन से हमें उसके लक्षणों का पता चलता है ।

 

वाचक ( नाम ) और वाच्य ( नामी ) का सम्बंध ईश्वर की तरह ही अनादि है ।

जैसे – दीपक ( दीये ) और प्रकाश ( उजाले ) का सम्बंध है ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी! पतंजलि योगसूत्र के सुन्दर ज्ञान से हमें नित्य अभिसिंचित करने के लिए आपको बारम्बार प्रणाम व धन्यवाद आचार्य जी ! ?

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