स एष पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात् ।। 26 ।।

 

शब्दार्थ :- स एष, ( वह ईश्वर ) पूर्वेषाम्, ( पहले उत्पन्न हुए सभी गुरुओं का ) अपि, ( भी ) गुरु, ( ज्ञान देने वाला / विद्या देने वाला है । ) कालेन, ( काल अर्थात समय की ) अनवच्छेदात्, ( सीमा / बाध्यता से रहित होने के कारण । )

 

सूत्रार्थ :- वह ईश्वर  काल या समय की सीमा के बन्धन से परे होने के कारण पूर्व में उत्पन्न हुए सभी गुरुओं  का गुरु  है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में ईश्वर  को काल की सीमा से परे बताते हुए उसे सभी गुरुओं का गुरु  बताया है ।

 

अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले हितकारी पुरुष  को गुरु कहतें हैं । पूर्व, वर्तमान या भविष्य में उत्पन्न होने वाले सभी गुरु काल की सीमा से बंधे हुए है । जो गुरु पूर्व में उत्पन्न हुए थे वो वर्तमान में नही हैं । और जो वर्तमान में हैं वह भविष्य में नहीं होंगे । साथ ही जो भविष्य में उत्पन्न होने हैं उनकी भी समय सीमा तय है ।

एक समय के बाद सभी को इस सृष्टि से चले जाना है । लेकिन ईश्वर  इस समय की सीमा से ऊपर अर्थात परे  है । ईश्वर को काल या समय प्रभावित  नही कर सकते । इसी कारण से वह ईश्वर पूर्व में उत्पन्न सभी गुरुओं का गुरु है ।

वह ईश्वर जैसा सृष्टि के आरम्भ में अपने ज्ञान व ऐश्वर्य  से युक्त  था ठीक उसी प्रकार वह उससे भी पूर्व की सृष्टियों / काल में ज्ञान व ऐश्वर्य युक्त  रहा है । इस प्रकार ईश्वर के स्वरूप को समझना चाहिए ।

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  1. ?Prnam Aacharya ji ! This knowledge is exist in reality ….. anyhow we didn’t mention it …and now we dive again and again in this great knowledge with the help of your beautiful explanations ….Prnam & dhanyavad Sriman Aacharya ji !?

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