क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट: पुरुषविशेष ईश्वर: ।। 24 ।।

 

शब्दार्थ :- क्लेश, ( अविद्या आदि पञ्च क्लेशों ) कर्म, ( शुभ- अशुभ मिश्रित कर्मों  ) विपाक, ( कर्मों के फलों ) आशयै:, (भोगों के संस्कारों से ) अपरामृष्ट:, ( सम्पर्क रहित, सम्बध रहित ) पुरुषविशेष, ( पुरुषों से विशिष्ट चेतना वाला ) ईश्वर ( वह ईश्वर है । )

 

सूत्रार्थ :- अविद्या आदि पञ्च क्लेशों, शुभअशुभ मिश्रित कर्मों, उनके फलों, भोगों  के संस्कारों  के सम्बध से रहित जो विशिष्ट चेतन तत्त्व है । वही ईश्वर  है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में ईश्वर के स्वरूप का वर्णन किया गया है । ईश्वर को यहाँ पर पुरुष विशेष  कह कर सम्बोधित किया है ।  सूत्रकार कहते हैं कि वह पुरुष विशेष ईश्वर सभी क्लेशों से , शुभ- अशुभ व मिश्रित कर्मों से, उन कर्मों के फलों से, व भोगों के संस्कारों से रहित है । उसका इन सभी से कोई सम्बध नही है । अब इनका विस्तार से वर्णन करतें हैं ।

 

  1. क्लेश रहित :- जितने भी इस संसार में दुःख हैं उन सबका मूल कारण यह क्लेश ही होते हैं । जीवात्मा का इन क्लेशों के साथ सम्बन्ध होने के कारण वह दुःख का अनुभव करता है । लेकिन वह ईश्वर इन क्लेशों के सम्बंध से रहित है । इसलिए वह दुःख रहित है ।

क्लेशों की संख्या पाँच है –

  1. अविद्या
  2. अस्मिता
  3. राग
  4. द्वेष
  5. अभिनिवेश

 

  1. कर्म रहित :- कर्म मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-
  2. सकाम कर्म
  3. निष्काम कर्म

इनमें भी जो सकाम  कर्म है उसके तीन भेद किए गए हैं –

  1. शुभ कर्म ( पुण्य कर्म )
  2. अशुभ कर्म ( पाप कर्म )
  3. मिश्रित कर्म ( पाप और पुण्य दोनों प्रकार के मिले- जुले कर्म )

 

जीवात्मा इन तीनों कर्मों में लिप्त रहता है । वह कभी पाप कर्म कभी पुण्य कर्म व कभी पाप – पुण्य मिश्रित कर्म करता रहता है । लेकिन वह पुरूष विशेष ईश्वर इन सभी कर्मों से मुक्त केवल निष्काम कर्म  करता है ।  

  1. विपाका रहित :-विपाक कर्मों के फल को कहते हैं । जो पाप कर्म करता है वह दुःखों को भोगता है । जो पुण्य कर्म करता है वह सुख को भोगता है । और जो दोनों अर्थात मिश्रित कर्म करता है वह सुख और दुःख  दोनों को भोगता है । लेकिन वह पुरुष विशेष ईश्वर सुख व दुःख से रहित अर्थात कर्मों के फल से रहित है ।

 

  1. आशय रहित :- मनुष्य के भीतर कर्मों के फलों को भोगने के बाद जो संस्कार बनते है उन्हेंआशय कहते हैं । जीवात्मा द्वारा सुख- दुःख भोगने से उसके अन्दर उन संस्कारों का आश्रय रहता है । लेकिन पुरुष विशेष ईश्वर संस्कारों के आशय से भी रहित हैं ।

अतः वह पुरुष विशेष ईश्वर क्लेश, कर्म, विपाक  और आशय  से रहित है ।

 

अगले सूत्र में भी उस ईश्वर की विशेषताओं का वर्णन किया गया है ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी! इस सुंदर ज्ञान की बारिकीयो से हमे परिचित कराने के लिए आपको बारम्बार प्रणाम व धन्यवाद! ?

  2. ॐ गुरुदेव* ईश्वर के स्वरूप की इतनी सुन्दर व्याख्या , मैने तो सोचा भी नही था कि ईश्वर का स्वरूप इस तरह होता है।
    इसका अर्थ ये हुआ कि जिस किसी में ऐसे गुण आ जाए उसे फिर ईश्वर का ही प्रतिरूप मानना चाहिए।

  3. It is clarified in the Sanskrit shloka that the only best of the best Purush beyond all impurities is Ishwar (GOD)
    It means God is nonpareil.

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