ईश्वरप्रणिधानाद्वा ।। 23 ।।
शब्दार्थ :- वा, ( इसके अतिरिक्त ) ईश्वरप्रणिधानात् ( ईश्वर / भगवान के प्रति समर्पण भाव से भी ) समाधि की सिद्धि अति शीघ्रता से होती है।
सूत्रार्थ :- पूर्व में वर्णित तीव्र संवेग वाले साधकों के अतिरिक्त ईश्वर के प्रति समर्पण भाव करने से भी समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति अति शीघ्रता से होती है ।
व्याख्या :- पूर्ण भक्तिभाव से उपासना करते हुए अपने समस्त कर्मों का अर्पण ईश्वर में कर देना बिना किसी लौकिक फल की चाह ( इच्छा ) के ईश्वर प्रणिधान कहलाता है ।
उदाहरण स्वरूप :-
जिस प्रकार एक विद्यार्थी जब गुरुकुल में प्रवेश लेता है तब वह अपने समस्त गुणों व दोषों को अपने गुरु को अर्पण कर देता है ।
इसके बाद गुरु उसकी पात्रता के अनुसार उसे ज्ञान देता है । और उस ज्ञान के द्वारा वह उसके गुणों को बढ़ाने व दोषों को घटाने का काम करता है । इससे गुरु अपने शिष्य की सहायता करता हुआ उसे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है । इसके लिए सर्वप्रथम उस शिष्य को अपने समस्त कर्मों का अर्पण अपने गुरु या आचार्य के प्रति करना होता है । तभी कोई आचार्य अपने शिष्य का कल्याण कर पाता है । इस प्रकार एक आचार्य या गुरु अपने शिष्य का अपने ज्ञान द्वारा कल्याण करके उसे अनुगृहीत करता है ।
ठीक इसी प्रकार से ईश्वर के प्रति समस्त कर्मों का अर्पण करने मात्र से, ईश्वर उस साधक को अपनी विशेष कृपा से अनुगृहीत करता हुआ उसकी सहायता करता है । जिससे साधक को समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति अति शीघ्र होती है । इसे ही ईश्वर प्रणिधान कहा गया है ।
ईश्वर प्रणिधान को योग का एक अभिन्न अंग माना गया है । तभी योगसूत्र में कई बार इसका वर्णन किया गया है । जिससे इसकी ( ईश्वर प्रणिधान ) उपयोगिता का पता चलता है । जिस प्रकार से अभ्यास और वैराग्य के द्वारा चित्त वृत्तियों का निरोध किया जाता है । ठीक उसी तरह से ईश्वर प्रणिधान के द्वारा भी चित्त वृत्तियों का निरोध करके शीघ्र ही समाधि को प्राप्त किया जा सकता है ।
जब साधक अपने समस्त कर्मों का समर्पण ईश्वर में कर देता है । तब ईश्वर योगी को संकल्प मात्र से सहायता प्रदान करता है । ईश्वर की संकल्प द्वारा दी गई सहायता से योगी साधक की समस्त चित्त वृत्तियाँ क्षीण ( कमजोर ) हो जाती हैं । और तब ईश्वर अपनी विशेष कृपा से साधक को अपने स्वरूप का साक्षात्कार करवाता है । जिससे साधक को अति शीघ्र ही समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति होती है ।
अतः ईश्वर प्रणिधान को समाधि प्राप्ति का विशेष साधन माना गया है ।
?Prnam Aacharya ji ! त्वदीयं वस्तु गोविंद ।। तुभ्यमेव समप॔ये।। सुन्दर ज्ञान ***धन्यवाद आचार्य जी !?
बहुत खूब गुरु जी
Thank u sir
Best explanation of isver parnidhan guru ji
ॐ गुरुदेव*
बहुत अच्छी व्याख्या की है आपने।
आपके द्वारा की हुई व्याख्या की
जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है।
बहुत अच्छा बहुत सरल रूप में समझाया है आपने
The best sir