मृदुमध्याधिमात्रत्वात्ततोऽपि विशेष: ।। 22 ।।

 

शब्दार्थ :- मृदु, ( साधारण या कम प्रयास करने वाला ) मध्य, ( कम से थोड़ा ज्यादा / मध्यम प्रयास करने वाला ) अधि, ( अधिक या ज्यादा प्रयास करने वाला ) मात्रत्वात्, ( मात्रा वाला ) तत:, ( उससे ) अपि, ( भी ) विशेष, ( विशिष्ट / श्रेष्ठ होता है । )

 

सूत्रार्थ :- तीव्र संवेग में भी तीन प्रकार के साधक होते हैं । जो क्रमशः कम, मध्यम  व ज्यादा मात्रा  में प्रयास करने वाले होते हैं । यह उनसे विशिष्ट होते हैं ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में उस तीव्र संवेग के भी तीन प्रकार बताए हैं-

  1. मृदु
  2. मध्य
  3. अधि

उपर्युक्त वर्णित संवेग की अवस्था के अनुसार साधक को समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति में समय लगता है । जितना अन्तर उनकी साधना की मात्रा में होगा उतना ही अन्तर समाधि व उसके फल की प्राप्ति में होगा ।

 

  1. मृदु :- जिस साधक की साधना की मात्रा कम या साधारण होगी वह मृदु साधक कहलाता है । उसे समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति देर से होती है । क्योंकि उसके द्वारा किए गए प्रयास की मात्रा कम थी । इसलिए उसको सफलता देर से मिलेगी । इनमें विवेक- वैराग्य कम पाया जाता है ।

 

  1. मध्य :- जिन साधकों की साधना की मात्रा मृदु साधक की अपेक्षा कुछ ज्यादा व अधिक वालों से थोड़ी कम होती है । वह मध्यम दर्जे ( अवस्था ) का साधक कहलाता है । इसके प्रयास व लगन की मात्रा पहले वाले से ज्यादा होती है । जिससे इनको समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति में पहले वाले ( मृदु ) की अपेक्षा कम समय लगेगा ।  इसलिए यह मध्यम श्रेणी के साधक कहलाते हैं । यह मध्यम विवेक- वैराग्य वाले होते हैं ।

 

  1. अधि :- जिन साधकों की साधना की मात्रा सबसे ज्यादा होती है । वह अधिमात्र साधक कहलाते हैं । यह साधक मृदु व मध्य से ज्यादा निष्ठा  व लगन  ( मात्रा में ) से प्रयास करतें हैं । इसलिए इनको समाधि व समाधि के फल की प्राप्ति मृदु व मध्य दर्जे के साधकों की अपेक्षा अति शीघ्रता  से होती है । यह उच्च विवेक- वैराग्य वाले होते हैं ।

 

अतः जिस साधक की लगन व निष्ठा ( प्रयास ) की मात्रा जितनी कम होगी उसे सफलता मिलने में उतना ही ज्यादा समय लगेगा । जिस साधक की लगन व निष्ठा की मात्रा बीच ( मध्यम )  की होगी उसे सफलता कम मात्रा वाले से पहले व अधिक मात्रा वाले से ज्यादा समय में मिलेगी । और जिस साधक की लगन व निष्ठा ज्यादा मात्रा वाली होगी उसे सफलता उतनी ही जल्दी से मिलेगी ।

इस प्रकार इस सूत्र में साधकों की तीन श्रेणियों  ( प्रकार ) को बताया गया है ।

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  1. ?प्रणाम आचार्य जी ! इस सुंदर ज्ञान के आधार पर योग माग॔ की यात्रा का इतना विस्तृत व शुभ ज्ञान देने के लिए आपको बारम्बार प्रणाम व धन्यवाद !आचार्य जी !?

  2. Pranaam Sir!?? Very beautifully said, today when youngsters are looking for short cuts for everything this Sutra rightly gives the ratio of effort and it’s results.

  3. ॐ गुरुदेव* आपके पुरुषार्थ को शत _ शत नमन है।
    अति सुन्दर व्याख्या।

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