तत्परं पुरुषख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम् ।। 16 ।।
शब्दार्थ :- पुरुषख्याते: ( पुरूष के ज्ञान द्वारा ) गुणवैतृष्ण्यम् ( प्रकृति के गुणों में तृष्णा अर्थात लालसा का पूर्ण रूप से अभाव हो जाना ) तत् ( वह ) परम् ( पर अर्थात सबसे ऊँचा वैराग्य है । )
सूत्रार्थ :- जब पुरुष को आत्मज्ञान हो जाता है । तब वह प्रकृति के गुणों को अच्छी तरह से जानने लगता है । इस अवस्था में उसमें प्रकृति के गुणों को प्राप्त करने की इच्छा बिल्कुल समाप्त हो जाती है । अर्थात उनके प्रति विराग ( राग का अभाव ) उत्पन्न हो जाता है । इसे परम् वैराग्य अथवा सबसे ऊँचा ( बड़ा ) वैराग्य कहा है ।
व्याख्या :- इस सूत्र में पर वैराग्य के लक्षण को बताया गया है । मुख्यतः वैराग्य दो प्रकार का होता है- 1. अपर वैराग्य और 2 . पर वैराग्य ।
अपर वैराग्य में देखे व सुने हुए विषयों के प्रति वैराग्य जागृत होता है । परन्तु पर वैराग्य में तो प्रकृति के सभी गुणों के प्रति भी वैराग्य भाव जागृत हो जाता है । इसलिए इसे परम् अर्थात श्रेष्ठ वैराग्य कहा है ।
प्रकृति के गुण :- अब प्रश्न उठता है कि प्रकृति के वे कौन से गुण हैं ? जिनके प्रति साधक पूर्णतः तृष्णा रहित हो जाता है । वे गुण हैं-
- 1. सत्त्वगुण
- 2. रजोगुण
- 3. तमोगुण ।
इन तीनों गुणों से ही प्रकृति का निर्माण हुआ है ।
जब साधक के चित्त में सत्त्वगुण की प्रधानता होती है । तब रजोगुण और तमोगुण उसे प्रभावित नही कर पाते हैं । इस स्थिति में चित्त एकाग्र हो जाता है । जिससे उसे अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाता है । जब सत्त्वगुण की अवस्था में ही साधक का अभ्यास निरन्तर बढ़ता रहता है । तो उसे सत्त्वगुण में भी दोष ( कमी ) दिखने लगता है । तब उसे इस सत्त्वगुण से भी विराग हो जाता है ।
जिसके फलस्वरूप वह सत्त्वगुण को भी छोड़ देता है । इस प्रकार साधक जब प्रकृति के गुणों को प्राप्त करने की लालसा से रहित हो जाता है । तब वैराग्य की इस पराकाष्ठा ( उच्चतम अवस्था ) को परम् अर्थात श्रेष्ठ वैराग्य कहते हैं ।
नोट :- अपर वैराग्य को सम्प्रज्ञात समाधि का व पर वैराग्य को असम्प्रज्ञात समाधि का उपाय ( पास पहुँचने का साधन ) बताया है ।
अन्य योगशास्त्रों में वैराग्य के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है –
- यतमान
- व्यतिरेक
- एकेन्द्रिय
- वशीकार ।
Comment… thanku again sir??
?प्रणाम आचार्य जी! आपको बहुत धन्यवाद ! योगसूत्र के इस महान शिक्षा को इतने सुन्दर व सरल शब्दों मे हमें ससमझाने लिए । आपको बारम्बार प्रणाम आचार्य जी ।?
ॐ गुरुदेव।
बहुत ही सुन्दर ,सरल व स्पष्ट व्याख्या की है आपने।
इसके लिए आपको हृदय से आभार ।
Bahut Sundar..
Priye Somveer Ji Namaskar,Aapki yogsutro ki vyakhyae bht hi satik or adbhut hai…..Bht Bht Sadhuwad aapko.
Thank you sir, Your language is very easy.
Pranaam Sir! It’s really easy to understand now……. well explained.
Thank you Sir
Nice explanation of parvaragya and uppervaragya
superb sir, as usual, out of the words. Love your explanations alot.