तत्र स्थितौ यत्नोऽभ्यास: ।। 13 ।।

 

शब्दार्थ :- तत्र,  ( वहाँ )  स्थितौ, ( स्थिरता के लिए ) यत्न, (किया गया प्रयास) अभ्यास ( अभ्यास ) है।

 

सूत्रार्थ :- वहाँ उन दोनों ( अभ्यास और वैराग्य ) में से चित्त  की स्थिरता  हेतु किए गए प्रयास  या प्रयत्न  को अभ्यास  कहते हैं ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में अभ्यास का स्वरूप बताया गया है। चित्त  की स्थिरता  के लिए किए जाने वाले प्रयत्न  को अभ्यास कहा है ।

चित्त को बार- बार अभ्यास के द्वारा एकाग्र किया जा सकता है । और एकाग्र चित्त द्वारा ही समाधि की प्राप्ति हो सकती है । अतः पहले चित्त के स्वरूप को जानते हैं –

 

चित्त  का स्वरूप :-

 

हमारे चित्त का निर्माण सत्त्वगुण, रजोगुण  व तमोगुण  से हुआ है ।  इनमें से जब चित्त में रजोगुण  व तमोगुण  का प्रभाव बढ़ता है । तो चित्त की चञ्चलता  बढ़ती है । लेकिन जैसे ही चित्त में सत्त्वगुण  का प्रभाव बढ़ता है । वैसे ही चित्त की दशा शान्त  हो जाती है । चित्त की इसी शान्त अवस्था को स्थिति  अथवा स्थिरता  कहा है।

 

जब हमारा चित्त स्थिर  हो जाता है । तो सभी वृत्तियों  का निरोध  हो जाता है । इसलिए चित्त की इस स्थिर  अवस्था को स्थिर  अथवा एकाग्र  बनाएं रखने के लिए किए गए प्रयास  को अभ्यास  कहते है ।

 

जब हम किसी लक्ष्य  या किसी उद्देश्य  को पूरा करने के लिए बारबार कोशिश  करते हैं । तब वह कोशिश ही अभ्यास  कहलाती है । जैसे – कोई खिलाड़ी किसी खेल प्रतियोगिता में पदक  जीतने के लिए प्रतिदिन  कड़ी मेहनत  करता है । पदक प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन की कड़ी मेहनत  को ही अभ्यास  कहते हैं । इसी प्रकार समाधि प्राप्ति हेतु चित्त  को एकाग्र  करने के लिए किए गए प्रयास  को अभ्यास  कहते हैं ।

 

उदाहरण स्वरूप :-

 

जिस प्रकार ध्यानात्मक आसन  करने से शरीर में एकाग्रता  आती है । संवर्धनात्मक  ( खिंचाव या फैलाव के ) आसन  करने से शरीर में लचीलापन आता है । और आरामदायक आसन करने से शरीर में स्थिलता आती है ।

 

यदि हम एकाग्रता, लचीलेपन  और स्थिलता  को बनाए रखना चाहते हैं । तो इसके लिए हमें क्रमशः ध्यानात्मक, संवर्धनात्मक  और  आरामदायक  आसनों का अभ्यास  पूरे मनोभाव  के साथ बारबार  करना पड़ेगा ।  तभी हम शरीर को स्थिर एवं सुखी रख सकते हैं । ठीक इसी प्रकार चित्त  की एकाग्र  अवस्था को एकाग्र  बनाएं रखने के लिए किए जाने वाले प्रयत्न  या प्रयास  को अभ्यास कहते हैं ।

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  1. Prnam Aacharya ji. ..your all the contribution to in the field of yoga is not only appreciable but also helpful for everyone .. thank you so much for this good work & good will…. Prnam Aacharya ji. …

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