अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोध: ।। 12 ।।

 

शब्दार्थ :- अभ्यास, ( प्रयत्न या कोशिश करना ) वैराग्याभ्याम् , ( राग रहित, तृष्णा रहित स्थिति के द्वारा ) तन्निरोध:  ( उन सबको रोकना, अवरोध करना )

सूत्रार्थ :- अभ्यास  और वैराग्य  के द्वारा उन सभी वृत्तियों का निरोध  होता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में चित्त वृत्तियों के निरोध के दो उपायों  का वर्णन किया गया है । चित्त की वृत्तियों के पूर्ण रूप से रुकने पर ही साधक को समाधि  की प्राप्ति होती है । इसके लिए सर्वप्रथम अभ्यास  और वैराग्य  के पालन की बात कही है ।

 

अभ्यास  :-

चित्त की वृत्तियों को रोकने व चित्त को एकाग्र करने के लिए किए गए प्रयास  या कोशिश  को अभ्यास  कहते है । बार – बार किए गए प्रयत्नों से चित्त की वृत्तियाँ रुक  जाती हैं । और चित्त में एकाग्रता  आती है ।

 

अभ्यास के विषय में प्रसिद्ध दोहा :-

 

करतकरत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

रसरी आवतजात ते सिल पर परत निसान ।।

 

अर्थात बार – बार प्रयत्न करते रहने से असमर्थ मनुष्य भी समर्थ  ( कमजोर भी बलवान ) हो जाता है । जिस प्रकार कुँए  के पत्थर पर रस्सी के बार – बार घिसने से उस पत्थर  के ऊपर निशान  पड़ जाते हैं ।

जबकि पत्थर बहुत मजबूत  होता है । और रस्सी बहुत नाजुक  होती है ।  लेकिन बार – बार उसके ऊपर घिसने से वह पत्थर पर भी निशान बना देती है । इसलिए बार – बार के प्रयास या कोशिश से साधक चित्त वृत्तियों का निरोध कर लेता है ।

वैराग्य  :-

वैराग्य का अर्थ है राग रहित  होना । जब मनुष्य की किसी भी पदार्थ या वस्तु में अत्यधिक आसक्ति  ( लगाव ) हो जाती है । तब वह राग बन जाता है । और जब मनुष्य की किसी भी विषय – वस्तु में आसक्ति  ( रुचि ) नही रहती, तब उसे विराग हो जाता है । जैसे  – बहुत सारे व्यक्तियों की इच्छा रहती है कि उनके पास बड़ी कार, बंगला, या बहुत सारा धन  हो । लेकिन वहीं कुछ व्यक्तियों को इन सभी भौतिक वस्तुओं  में किसी भी प्रकार की रुचि नही होती है । इस प्रकार भौतिक वस्तुओं को पाने की इच्छा  का   होना विराग  होता है । इस विराग को ही वैराग्य  कहते हैं ।

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  1. Prnam Aacharya ji. .Sutra sndhya 12 me vrittiyo nirodh ke liye is stik dohe ka udahran bhut hi upyukt hai… smjhane ki is kla ke liye Aapko vishesh dhanyavad aacharya ji. .. Prnam ..m

  2. Prnam Aacharya ji. .Sutra sndhya 12 me vrittiyo nirodh ke liye is stik dohe ka udahran bhut hi upyukt hai… smjhane ki is kla ke liye Aapko vishesh dhanyavad aacharya ji. .. Prnam ..m

  3. ॐ गुरुदेव*
    अति उत्तम व्याख्या आपके द्वारा की गई है।
    अति सरल, एवम् स्पष्ट शब्दों में आपने समझाने का प्रयास किया है।
    आशा है कि इससे योग के समस्त अभ्यासी लाभान्वित होंगे।

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