अनुभूतविषयासम्प्रमोष: स्मृति: ।। 11 ।।

 

शब्दार्थ :- अनुभूत, ( पहले से अनुभव या महसूस किए गए ) विषय, ( घटनाक्रम का  ) असम्प्रमोष: , ( दोबारा से स्मरण या याद आना ) स्मृति  ( स्मरण शक्ति या याददाश्त ) है।

 

सूत्रार्थ :- पहले से अनुभव की गई घटनाओं का दोबारा से याद  आ जाना ही स्मृति नामक वृत्ति होती है ।

 

व्याख्या :- हमारे जीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी घटती हैं, जो जीवन पर्यन्त  हमें याद  रहती हैं । जब भी उन घटनाओं से सम्बंधित कोई अन्य घटना घटती है । तब हमें पहले से घटित वो घटना ( बात ) याद आ जाती है । जो पहले इसी प्रकार से घटी हो । इस प्रकार के पुनः स्मरण  को ही स्मृति वृत्ति  कहा है ।

 

हमारे चित्त में भिन्न – भिन्न प्रकार की घटनाओं के संस्कार संचित  होते हैं । जब किसी भी संस्कार से सम्बंधित कोई घटना हमारे सामने घटती है । तो उससे सम्बन्धी जो संस्कार चित्त  में होता है । वह पुनः जाग्रत  हो जाता है । इस प्रकार के पुनः स्मरण  को ही स्मृति  कहा है ।

 

उदाहरण स्वरूप :-

 

जैसे कोई व्यक्ति आपको अपने कॉलेज  या यूनिवर्सिटी  ( महाविद्यालय या विश्वविद्यालय )के समय की कोई घटना बताए । और उसकी इस बात से आपको अपने कॉलेज  या यूनिवर्सिटी  की वैसी ही कोई घटना याद आ जाए । या कोई अपने विदेश दौरे  को लेकर अपना अनुभव आपको बताता है । तब उसके उस अनुभव से आपको अपने विदेश दौरे  का अनुभव याद आ जाए । इसे स्मृति कहते हैं । इस प्रकार पहले से घटी हुई घटनाओं की पुनरावृत्ति  होना ही स्मृति वृत्ति  कहलाती है ।

 

स्मृति वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-

 

जीवन में प्रत्येक व्यक्ति थोड़ा ही सही लेकिन कभी न कभी बीमार  अवश्य ही हुआ होगा । जब हमारा कोई परिचित बीमार  हो जाता है । तब हम उसका कुशलक्षेम  ( हालचाल ) पूछने जाते हैं । अचानक उस समय हमें पूर्व में अपने बीमार होने की कोई घटना याद  आती है । और उसे याद करके हमें पुनः कष्ट  का अनुभव होता है ।  यह स्मृति वृत्ति  का क्लिष्ट  स्वरूप है ।

 

स्मृति वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :-

 

जब हम किसी सम्मान  समारोह में जाते हैं । और किसी को सम्मानित होते हुए देखते हैं । तब हमें पूर्व में किसी समारोह में अपना सम्मानित  होना याद  आता है । और उसे याद करके हमें एक सुखद अनुभूति होती है । इस प्रकार की सुखद अनुभूति  का स्मरण  होना स्मृति वृत्ति  का अक्लिष्ट  स्वरूप है ।

 

अगले सूत्र में इन सभी वृत्तियों  के निरोध  का उपाय बताया गया है ।

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  1. Comment…sir, you are very valuable gift for us because you are making such a great knowledge available to us so easily ??thanku sir

  2. प्रणाम आचार्य जी, धन्यवाद! ?शब्द ज्ञान की इतनी सुन्दर व्याख्या को पढ़ने से बार-बार एक प्रसन्नता भरी अनुभूति होती है । सत्य है कि ईश्वर प्रसन्न होगें जो हमे इतनी सुंदर व्याख्या आपके द्वारा प्रदान की जा रही है । आपको बारम्बार प्रणाम आचार्य जी ।

  3. मेरा प्रणाम स्वीकारे हम सब बहुत ही सोभाग्य शाली हैं जो हमें इतना सुन्दर सच्चा सही मार्गदर्शन मिला है
    मेरा बारमबार प्रणाम

  4. ॐ गुरुदेव*
    आपके द्वारा किए गए योगसूत्रों की इतनी सुन्दर व्याख्या के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। अति सुन्दर, स्पष्ट व प्रभावशाली व्याख्या।
    आपका बहुत_ बहुत आभार ।

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