अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिर्निद्रा ।। 10 ।।

 

शब्दार्थ :- अभाव, ( वंचित होना ) प्रत्यय, ( ज्ञान का ) अवलम्बन, ( ग्रहण करने वाली ) वृत्ति, ( व्यापार ) निद्रा  ( जाग्रत और स्वप्न्न  से रहित अवस्था )

 

सूत्रार्थ :- शरीर की जाग्रत  और स्वप्न्न   अवस्थाओं के ज्ञान  से रहित  जो स्थिति होती है। वह निद्रा नामक वृत्ति  कहलाती है।

 

व्याख्या :- जीव ( मनुष्य )  की चार  अवस्थाएँ होती है। 1. जाग्रत, 2. स्वप्न्न , 3. सुषुप्ति, 4. तुरीय । प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति को अलग- अलग प्रकार की अनुभूतियाँ  होती हैं। इनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है:-

 

  1. जाग्रत :- जिस अवस्था में व्यक्ति अपने ज्ञान और विवेक से सभी कार्यों को पूर्ण करता है । वह जाग्रत अवस्था होती है । इसमें सभी ज्ञानेन्द्रियाँ, ( आँख, कान, आदि ) कर्मेन्द्रियाँ  ( हाथ, पैर आदि ) व मन  सुचारू रूप से कार्य करते हैं । जैसे कि पढ़नालिखना, खेलनाकूदना  आदि।
  2. स्वप्न्न :- जिस अवस्था में व्यक्ति की सभी ज्ञानेन्द्रियाँकर्मेन्द्रियाँ  सो जाएँ । और मन सक्रिय रहे । वह जीव की स्वप्न्न अवस्था  होती है । इसमें व्यक्ति का मन लगातार चलता रहता है ।  जिससे हमें भिन्न- भिन्न प्रकार के स्वप्न्न  आते रहते हैं ।
  3. सुषुप्ति :- जब व्यक्ति की सभी ज्ञानेन्द्रियाँकर्मेन्द्रियाँ सो जाएँ । और साथ में मन  भी सो जाएँ । यह जीव की  सुषुप्ति अवस्था  होती है ।  इसमें सभी प्रकार के क्रियाकलाप बन्द  हो जाते हैं । और व्यक्ति पूरी तरह से निद्रा  में लीन हो जाता है । यही निद्रा नामक वृत्ति होती है।
  4. तुरीय :- यह जीव की अन्तिम व सबसे ऊँची अवस्था होती है । इसमें वह परमानन्द की अभुभूति करता है । यह पहले की तीनों अवस्थाओं से रहित होती है । इसे ही आत्मा  का वास्तविक स्वरूप कहा गया है ।

निद्रा वृत्ति का क्लिष्ट स्वरूप :-

 

जब निद्रा के समय व्यक्ति में सत्त्वगुण  का प्रभाव कम हो जाता है ।  और रजोगुण  का प्रभाव बढ़ जाता है । तब वह नींद से उठने के बाद थकान, व तनाव  का अनुभव ( महसूस ) करता है । इस प्रकार वह निद्रा दुःखदायी  होती है । यह निद्रा वृत्ति  का क्लिष्ट  स्वरूप है ।

 

निद्रा वृत्ति का अक्लिष्ट स्वरूप :-

 

जब निद्रा के समय व्यक्ति में रजोगुण  का प्रभाव कम हो जाता है । और सत्त्वगुण  का प्रभाव बढ़ जाता है । तब वह नींद से उठने के बाद स्फूर्ति  व ताजगी  का अनुभव करता है । इस प्रकार वह निद्रा  सुखदायी  होती है । यह निद्रा वृत्ति  का अक्लिष्ट  स्वरूप है ।

Related Posts

May 6, 2018

तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीज: समाधिः ।। 51 ।।   शब्दार्थ :- तस्य, ( उसके ) ...

Read More

May 4, 2018

 तज्ज: संस्कारोंऽन्यसंस्कारप्रतिबन्धी ।। 50 ।।   शब्दार्थ :- तज्ज, ( उससे उत्पन्न होने वाला ...

Read More

May 3, 2018

श्रुतानुमानप्रज्ञाभ्यामन्यविषया विशेषार्थत्वात् ।। 49 ।।   शब्दार्थ :- श्रुत, ( श्रवण अर्थात सुनने से ...

Read More

May 2, 2018

ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा ।। 48 ।।   शब्दार्थ :- तत्र, ( उस अध्यात्म प्रसाद ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. ॐ गुरुदेव ?
    बहुत सुन्दर व्याख्या की गई है आपके द्वारा ।
    इससे योग से संबंधित सभी जन अत्यंत लाभान्वित होंगे।
    ? आपका बहुत-बहुत आभार।?

  2. Namaskar,

    My Question is :
    why Nidra is treated as vritti in patanjali ??
    should we eliminate and/or reduce the period of Nidra??

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}