अथ योगानुशासनम् ।।( योगसूत्र 1/1)
शब्दार्थ– (अथ ) अब, ( योगानुशासनम् ) योग के अनुशासन का प्रतिपादन ।
सूत्रार्थ– अब योग के अनुशासन अर्थात स्वरूप को बताने वाले ग्रन्थ / शास्त्र को प्रारम्भ किया जाता
है।
व्याख्या: योग शब्द का अर्थ वैसे तो बहुत व्यापक है, लेकिन यहा पर योग का अर्थ समाधि से लिया
गया है। समाधि की प्राप्ति कैसे की जाए?
इसके लिए सर्वप्रथम समाधि को समझना आवश्यक है । समाधि चित्त की सभी भूमियों में रहने
वाला धर्म है।
चित्त की क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र, और निरुद्ध नामक पाँच भूमियाँ हैं। चित्त का
निर्माण सत्त्व, रज, और तम से हुआ है।
जिनमें से किसी भी पदार्थ ( तत्त्व )की अधिकता या न्यूनता होने से चित्त की भूमियाँ बनती रहती है।
यहाँ पर इन सभी चित्त भूमियों को विस्तार से जानने का प्रयास करते है।
(1) क्षिप्त– जब चित्त में रजोगुण की प्रधानता/ अधिकता होती है और सत्त्वगुण व तमोगुण गौण
अवस्था में रहते है। तब रज के प्रभाव से व्यक्ति चञ्चल स्वभाव वाला हो जाता है। चंचलता के कारण
वह अपने चित्त को अनेकों विषयों में चलाता रहता है। इस प्रकार चित्त एकाग्र नही हो पाता जिससे
वह अपने लक्ष्य को निर्धारित ही नही कर पाता है। यह चित्त की क्षिप्त अवस्था है।
(2) मूढ़ – चित्त में तमोगुण के बढ़ने से और सत्त्वगुण व रजोगुण के गौण होने से व्यक्ति में आलस्य,
निद्रा, तंद्रा, व मूर्छा आदि अवगुणों का प्रभाव बढ़ता है। चित्त की इस अवस्था को मूढं कहा है। इसमें
किसी प्रकार के सही – गलत का भान ( ज्ञान ) नही होता है।
(3) विक्षिप्त– जब चित्त में सत्त्वगुण की अल्प मात्रा में प्रधानता होती है और साथ ही कभी – कभी
रजोगुण का प्रभाव भी हो जाता है तो कुछ समय के लिए हमारा चित्त एकाग्र होता है। परन्तु रजोगुण
के कारण वह एकाग्रता भंग हो जाती है। इसमें तमोगुण गौण रहता है। चित्त की इस अवस्था को
विक्षिप्त कहा है।
(4) एकाग्र– जब चित्त में सत्त्वगुण की प्रधानता और रजोगुण व तमोगुण की न्यूनता होती है, तब
व्यक्ति का चित्त किसी भी विषय या पदार्थ लम्बे समय तक एकाग्र होने लगता है। इससे योगी में
विवेक और वैराग्य बढ़ता है। इस अवस्था में ‘सम्प्रज्ञात समाधि’ की प्राप्ति होती है जिससे वह
असम्प्रज्ञात समाधि को प्राप्त करने का अधिकारी बनता है। चित्त की इस अवस्था को एकाग्र कहा
है।
(5) निरुद्ध– यह चित्त की अन्तिम अवस्था है। जब योगी सम्प्रज्ञात समाधि को प्राप्त कर लेता है तो
उसे उसमे भी कुछ दोष दिखाई देते है जिससे उसमे ‘परवैराग्य’ का भाव जागृत होने से चित्त की
समस्त वृत्तियों का निरोध हो जाता है। चित्त की इस निरुद्ध अवस्था को ही असम्प्रज्ञात समाधि
कहा गया है।
इस असम्प्रज्ञात समाधि में ध्याता, ध्येय, व ध्यान की त्रिपुटी समाप्त होने से शुद्ध चैतन्य आत्मस्वरूप
ही शेष रहता है। यही योगी के जीवन का अन्तिम लक्ष्य होता है, जिसमें ईश्वर का साक्षात्कार समाधि
द्वारा होता है।
इस अन्तिम लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए ?
योगसूत्र के पहले ही सूत्र “ अथ योगानुशासनम्” में ही मिलता है।
अनुशासन का अर्थ है किसी भी कार्य को उसके आवश्यक दिशा – निर्देशों का पालन करते हुए
किया जाए।
इन्ही आवश्यक दिशा- निर्देशों के पालन करने की बात इस सूत्र में कही गयी है।
इस प्रकार से जब पूरी तरह से अनुशासित होकर किसी कार्य को प्रारम्भ किया जाता है तो उस कार्य
की सफलता निश्चित हो जाती है।
इसको हम एक उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करेंगे:
मान लीजिए कि आपको किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना है। वहा तक पहुँचने के लिए
आप अपनी सुविधानुसार एक मार्ग का चयन करतें है । इसके बाद इस बात का निर्णय लिया जाता
है कि वहाँ तक पहुँचने के लिए किस साधन ( वाहन ) का प्रयोग किया जाए।
जब आप अपनी यात्रा को शुरू करतें है तो आपको जगह- जगह पर दूरी, दिशा, अवरोध ( रेड लाईट,
ब्रेकर ) व अन्य सूचनाएं देते हुए सूचना पट्ट ( साइन बोर्ड ) मिलते है। जिनसे आपको इस बात का पता
चलता रहता है कि आपको कहाँ मुड़ना है? कहाँ गति अवरोधक है? कहाँ पर रेड लाईट है? तथा
राष्ट्रीय राजमार्ग ( हाइवे ) पे गाड़ी की गति ( स्पीड ) कितनी होगी? पहुँच मार्ग ( लिंक, लोकल रोड ) पर
गति कितनी होगी? आदि सभी यातायात के नियमों का पालन करते हुए जब आप अपने लक्ष्य की
ओर बढ़ते हो, तब आपकी यात्रा का सुखद व सफल होना सुनिश्चित हो जाता हैं।
किसी भी प्रकार के व्यवधान की आशंका नही रहती है। क्योंकि आपने यात्रा के लिए आवश्यक
दिशा- निर्देशों ( अनुशासन ) का पालन करते हुए यात्रा को पूर्ण किया है।
ठीक इसी प्रकार हम अपनी योग यात्रा का प्रारम्भ भी उचित दिशा- निर्देशों ( अनुशासन ) के साथ
करतें है तो सफलता निश्चित तौर से हमें मिलती है।
इसी लिए महर्षि पतंजलि ने पहले ही सूत्र में अनुशासन की बात कही है। और साथ ही हम देखें तो
पूरे योगसूत्र की रचना भी एक अनुशासित तरीके से की गई है।
पहले पाद में अनुशासित होकर लक्ष्य ( समाधि ) का निर्धारण किया गया है।
दूसरे पाद में उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किस साधन ( योग साधना ) का प्रयोग किया
जाए। इसके लिए अनेक योगमार्गों ( क्रिया योग, अष्टांग योग, अभ्यास- वैराग्य, ईश्वर- प्रणिधान,
चित्त प्रसादन के उपाय ) का निर्देश किया है।जिनको साधक अपनी सुविधानुसार अपने अनुरूप योग मार्ग का चयन कर सके।
तीसरे विभूतिपाद में महर्षि पतंजलि जिन विभूतियों का वर्णन करते है, वो रास्ते में आने वाले सूचना पट्ट ( साइन बोर्ड )
का कार्य करती है। जिससे हमें यह पता चलता रहे कि हम सही दिशा में यात्रा कर रहें है।
और इस प्रकार से ( अनुशासित होकर ) यात्रा करते हुए हम अपने जीवन के अन्तिम लक्ष्य अर्थात
समाधि को प्राप्त करने के योग्य हो जाते है । इसी लक्ष्य को पुनः अन्तिम कैवल्य पाद में बताया गया
है।
अतः चाहे किसी स्थान की यात्रा हो या जीवन के अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त करने की यात्रा हो, उसकी
सफलता को सुनिश्चित करने के लिए हमें पूर्ण रूप से अनुशासित होकर उस यात्रा को पूरा करना
पड़ेगा।
हमारा अनुशासन ही हमारी सफलता को निर्धारित करता है।
निष्कर्ष :
योगसूत्र योग का पहला व्यवस्थित ग्रन्थ है | जिसको चार पादो में विभक्त करते हुए महर्षि पतंजलि ने
मानव जीवन के अन्तिम पुरुषार्थ अर्थात समाधि की प्राप्ति के लिए इसकी रचना की |
यह योगी साधकों के लिए योग साधना मार्ग को अत्यंत सुगम व सारगर्भित बनाने का अद्भुत कार्य किया है।
बहुत उपयोगी जानकारी
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Valuable information sir …….keep it up….
Good job guru ji…
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Very nice and useful information. Thanks sir.
Very useful information guru ji..
Thank you so much sir
Somveer ji bht bht Sadhuwad iss lekh ke liye aapko….bht hi saral shabdo mai aapne bdi gehrayi se pratham sutr ko define kiya.
अत्यंत ही उत्तम व्याख्या की है आपने
ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है आपने ।
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Very good sir nice.
Thnaks sir
Sir notes are very informative and effective
Nice explaination sir, thnxs
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बहुत सुन्दर ..ओ3म
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Sir
Comment… thanku sir for give us such knowledge ?
Prnam…Dhanyavad aacharya ji
बहुत ही सुन्दर
This is very useful information for every yoga student…..Thanku so much sir….Keep it up sir..
Sir thank you
Excellent sir…. bhut ache se btaya apne ish post mai sir net k hisab se agar question answer bhi mil jaye to bhut acha rahega……
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Very important information in simple way guru ji
Thank you
Great job sir ..
Nice bhai g
Bahut sundar somveer ji.aapke maadhyam se bahut se sadhko ko laabh milega om
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बहुत अच्छा वर्णन किया है सर
Very nice sir ji
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really great effort sir
बहुत सरल रूप तथा स्पष्ट व्याख्या
Perfect explanation
निचोड़ कर दिया सोमवीर जी आपने तो , मुर्ख से मुर्ख भी आपकी इस सरल व्याख्या को समझ कर विद्वता हासिल कर सकता है ।
बहुत सरल रू प में समझाया