आहार-विहार व व्यवहार के बदलाव से होगा नववर्ष शुभ
डॉ० सोमवीर आर्य
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।। ( गीता : अ.-6, श्लोक-17 )
अर्थात् योग किसका सिद्ध होता है? जिसका आहार-विहार नियमित है, अर्थात जो सदा भोजन व व्यवहार करने में अनुशासित रहता है, कर्मों में जिसकी चेष्टा नियमित है अर्थात जो सभी कर्मों को व्यवस्थित रूप से करने का प्रयास करता है, जो समय पर सोता और जागता है केवल उसी अनुशासित व्यक्ति को यह दु:खों का नाश करने वाला योग सिद्ध होता है।
वास्तविक खुशी कृत्रिम जीवन व्यवहार से संभव नहीं है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि युक्त आहार, विहार और व्यवहार से जीवन सुखमय होता है। यदि हम स्वस्थ नहीं हैं तो जीवन में न खुशहाली होगी और न ही उमंग। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा खानपान कैसा है, उठना-बैठना कैसे हैं। हमारा सोना-जागना, बोल-चाल कैसी है। दरअसल, हमारे शरीर में जो भी विकार होता है वह मन से उपजता है। यदि हमारा खानपान सात्विक है और उसकी मात्रा नियंत्रित है तो शरीर पुष्ट होता है। नये साल के संकल्प में खुशी की तलाश में हमारा स्वस्थ होना प्राथमिक शर्त है। जिसमें हमारे खानपान की गुणवत्ता और निद्रा के नियमित होने की भूमिका है। अब गीता हो या योग की प्रमाणिक पुस्तकें घेरंड संहिता व हठ प्रदीपिका हों, मनुष्य की खुशी के लिये सात्विक, संतुलित और उचित समय पर भोजन की जरूरत बताते हैं। हम बिना भूख के कुछ न खाएं। सात्विक-संतुलित भोजन से ही शरीर में धातुएं बनती हैं और उससे अस्थि-मज्जा। हमारा मन शरीर में रहता है और शरीर का प्रभाव उस पर रहता है।
मधुर बर्ताव की आदत
नये साल के संकल्प में हमारा व्यवहार नियंत्रित होना चाहिए। हमारा व्यवहार तब ठीक होगा जब हम गुस्सा न करें व चिड़चिड़ापन न हो। यह गुस्सा हमारे रक्तचाप को बढ़ाता है। सही मायनों में जितने भी रोग मसलन डिप्रेशन, डायबिटीज, थायराइड व हाइपरटेंशन हमारे शरीर में पैदा होते हैं उनकी वजह मनोकायिक असंतुलन है। मन अस्वस्थ है तो शरीर भी अस्वस्थ रहेगा। यदि हम नये साल में आक्रामकता को त्याग कर अपने व्यवहार को संयमित रखेंगे तो अवसाद मुक्त होकर स्वस्थ रहेंगे।
दरअसल, व्यवहार का संयम हमें दुखों से उबारता है। हम खुशी के मौके पर अतिरेक प्रदर्शन न करें। ऐसे ही दुख होने पर दुख में डूब न जाएं। संयमित व्यवहार से हम इनसे उबर सकते हैं। इन स्थितियों को समभाव से लेना चाहिए। जिसमें गीता के अनुसार आहार, विहार व व्यवहार का संयम काम आता है।
संकल्प से खुशी
वास्तव में देर रात तक जागकर जश्न मनाने से खुशी नहीं मिलती। नये साल के संकल्प लेते हुए समझना चाहिए कि समय पर सोना और जल्दी जागना हमारे स्वास्थ्य की अनिवार्य शर्त है। तभी हमारी चेष्टाओं के क्रियाकलाप नियंत्रित हो पाएंगे। देर रात का भोजन शरीर के लिये विष जैसा होता है और कई रोगों को जन्म देता है। इसी तरह तामसिक भोजन का प्रभाव भी होता है। महामारी के दौर में हमारा खानपान व संयमित व्यवहार ही हमारी इम्युनिटी को बढ़ाएगा।
ब्रह्मचर्य का पालन
इस समय देश में यौन इच्छाओं का उफान नजर आता है। नये साल के संकल्प में हमें यौन व्यवहार को संयमित करने का लक्ष्य रखना चाहिए। हमारे शास्त्रों में गृहस्थों और ऋषियों के लिये ब्रह्मचर्य के पालन पर बल दिया गया। निस्संदेह, काम का अर्थ संतति उत्पत्ति से है। उसके लिये संयम की जरूरत है। ब्रह्मचर्य का अर्थ संयमित यौन व्यवहार और वीर्य की रक्षा करना है। इससे ही हमारे शरीर में धातुएं, अस्थिमज्जा का निर्माण होता है और स्वस्थ शरीर का निर्माण होता है। ये हमारे जीवनी शक्ति का आधार भी है। जरारोधक भी है। हमें काम इच्छाओं का दास नहीं होना चाहिए।
मन में उमंग
दरअसल, हमारे जीवन में उमंग बाह्य वस्तुओं से नहीं आ सकती। जब हमारी दिनचर्या सुधरेगी। हमारी जीवन शैली स्वस्थ होगी तो तभी मन में उमंग आएगी। जीवन के सुख का समाधान हमारी संस्कृति और संस्कारों में है। हमारे खानपान व पहनावे में है। पैसा, पार्टी व हुल्लड़ हमारी संस्कृति के अवयव नहीं हैं। हम दीपक संस्कृति के अनुयायी हैं, जो हर जगह को प्रकाशमान करने में विश्वास रखती है। खाओ पियो और मौज करो का दर्शन पाश्चात्य है।
-डॉ़ सोमवीर आर्य, निदेशक,स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, सूरीनाम, दक्षिणी अमेरिका से बातचीत पर आधारित