समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः । शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ।। 18 ।। तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् । अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ।। 19 ।। व्याख्या :- जिसके लिए मित्र और शत्रु दोनों ही एक समान हैं तथा जिसके लिए मान व अपमान दोनों ही परिस्थितियों एक समान हैं, जो सर्दी- …
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- Category: Bhagwad Geeta – 12